राजस्थान में कोरोना का एक साल : 2787 मौतें, तीन लाख बीस हजार 455 संक्रमित

जयपुर। राजस्थान में वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण को मंगलवार को एक साल पूरा हो गया। प्रदेश में 02 मार्च 2020 को सवाई मानसिंह अस्पताल (एसएमएस) में इटली के 69 वर्षीय पर्यटक कोरोना संक्रमित मिला था। इसके बाद कोरोना पहले भीलवाड़ा और बाद में सभी 33 जिलों तक फैलता गया।

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बीते एक साल में संक्रमण के कारण राजस्थान में 2787 लोगों की मौतें हो चुकी हैं, जबकि तीन लाख बीस हजार 455 लोग संक्रमण का शिकार हो चुके हैं। अभी राज्य में 1304 सक्रिय केस है। राजस्थान में रिकवरी दर 98.73 फीसदी हैं, जबकि मृत्यु दर 0.87 फीसदी। राज्य में फिलहाल 26 मरीज आईसीयू में भर्ती हैं और पांच वेंटिलेटर पर उपचाररत हैं। इस एक साल में हजारों परिवारों ने अपनों को खोया, तो कईयों की जिन्दगी इस विश्वव्यापी बीमारी ने बदल दी। इस मेडिकल इमरजेंसी ने हेल्थ सेक्टर को आगामी कई सालों का विजन दे दिया है।

पहला केस मिला तब राजस्थान में कोरोना जांच की सुविधा नहीं थी। सीएम गहलोत ने सबसे विश्वसनीय आरटीपीसीआर टेस्ट पर अपना फोकस रखा और चरणबद्ध तरीके से जिलों तक जांच की सुविधा पहुंचाई। फिलहाल राजस्थान में कोरोना टेस्ट की 60 लैब संचालित है, जहां एक दिन में 66 हजार 886 जांच करने की सुविधा उपलब्ध है। गुजरे एक साल में कोरोना के लिए कुल 429 चिकित्सा संस्थानों को चिह्नित किया गया। इसमें से 282 को कोविड केयर सेन्टर, 87 को डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेन्टर और 60 को डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल बनाया गया। अभी राजस्थान में 42886 आईसोलेशन बैड, 8532 ऑक्सीजन सपोर्ट बैड और 2326 आईसीयू बैड की सेवाएं उपलब्ध है।

एसएमएस अस्पताल के चिकित्सकों ने शुरूआती चरण में लोपिनाविर और रिटोनाविर दवा के कॉम्बिनेशन से कोरोना पॉजिटिव मरीजों को ठीक किया। देश-दुनिया के चिकित्सकों ने इस कॉम्बिनेशन को सराहा। भीलवाड़ा और रामगंज में कोरोना का स्प्रेड और फिर उसकी रोकथाम के लिए अपनाया गया मॉडल भी देश-दुनिया के लिए नजीर बना। केन्द्र से पहले राजस्थान सरकार ने कोरोना की गंभीरता को समझा। सबसे पहले 18 मार्च को प्रदेशभर में धारा 144 लागू की गई। इसके बाद ही लॉकडाउन की दिशा में भी राजस्थान ने ही पहले कदम उठाया। केन्द्र की एनओसी के बावजूद गहलोत सरकार ने रैपिड और एंटीजन टेस्ट के बजाय विश्वसनीय आरटीपीसीआर टेस्ट पर फोकस किया।

निजी अस्पतालों की मनमानी पर भी सरकार ने नकेल कसी। निजी अस्पतालों में बैड की श्रेणी के हिसाब से दरों का निर्धारण किया गया, जिससे काफी हद तक मरीजों को राहत मिली।