ईदी अमीन का शासनकाल युगांडा के इतिहास में एक काला अध्याय माना जाता है। उनके शासन के दौरान हुई हिंसा, अत्याचार, और राजनीतिक अस्थिरता ने देश को गहरे जख्म दिए। उसकी कहानी यह बताती है कि एक क्रूर व्यक्ति के शासन का देश की जनता और उसकी समृद्धि पर कितना गहरा असर पड़ सकता है। उनके शासन के बाद युगांडा को स्थिरता और प्रगति की ओर बढ़ने में कई साल लगे।
ईदी अमीन युगांडा के एक प्रभावशाली और विवादास्पद व्यक्तित्व था, जिनका असली नाम अल-हाजी अलीम-उल-इस्लाम था। उसने 1971 से 1979 तक युगांडा के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया और अपने शासनकाल के दौरान उसने देश की राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक संरचना को पूरी तरह से बदल दिया।
प्रारंभिक जीवन
ईदी अमीन का जन्म 1925 में पश्चिमी युगांडा के कोबोको में हुआ था। वे एक न्युबियन मुस्लिम परिवार से था और उन्होंने अपनी शिक्षा प्रारंभिक स्तर तक ही प्राप्त की। इसके बाद वे ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना में भर्ती हो गया, जहां उसने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सेवा दी। यहीं से उसका राजनीतिक करियर शुरू हुआ, जो बाद में युगांडा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला था।
सत्ता में उभार
ईदी अमीन ने 1971 में एक सैन्य तख्तापलट के माध्यम से राष्ट्रपति मिल्टन ओबोटे को हटा दिया और युगांडा के राष्ट्रपति बन गया। उनका शासनकाल अत्यधिक विवादास्पद था। उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों को खत्म करने और अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए अत्याचार और हिंसा का सहारा लिया। माना जाता है कि उनके शासन के दौरान करीब 3 से 5 लाख लोग मारे गए थे।
नीतियां और शासन
ईदी अमीन ने कई विवादास्पद नीतियां लागू कीं। उन्होंने 1972 में भारतीय और एशियाई मूल के 60,000 से अधिक लोगों को युगांडा से निष्कासित कर दिया, जिनमें से अधिकांश व्यापारिक समुदाय से थे। इससे युगांडा की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा क्योंकि ये लोग देश की आर्थिक रीढ़ माने जाते थे। उनके निष्कासन से युगांडा की व्यापारिक गतिविधियां लगभग ठप हो गईं और देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई।
विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध
ईदी अमीन की विदेश नीति भी बहुत विवादास्पद थी। उसने खुद को “अफ्रीका का आखिरी राजा” और “ब्रिटेन का विजेता” घोषित किया। उन्होंने पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को खराब कर लिया और लीबिया, सऊदी अरब, और सोवियत संघ जैसे देशों के साथ निकटता बढ़ाई। उसका शासनकाल युगांडा के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए भी हानिकारक साबित हुआ।
पतन और निर्वासन
1979 में तंजानिया की सेना और युगांडा के विद्रोही समूहों ने अल अमीन के शासन को खत्म कर दिया। उसे देश छोड़कर भागना पड़ा और उसने पहले लीबिया और फिर सऊदी अरब में शरण ली। सऊदी अरब में ही 16 अगस्त 2003 को उसकी मृत्यु हो गई।
ईदी अमीन के कई उपनाम थे जो उसकी क्रूरता के कारण रखे गए थे।
“बिग डैडी”
किजाम्बिया (” माचेटे “)
“युगांडा का कसाई”
“अफ्रीका का कसाई”
“कम्पाला का कसाई”
“ब्लैक हिटलर” ।