ईरान का वो सूफी फकीर… जिसके नाम से फेमस है दिल्ली का ये इलाका, दिलचस्प है कहानी

दिल्ली को इतिहासों का गढ़ कहा जाता है. राज्य में कई ऐतिहासिक इमारतें और जगह हैं, जिन्हें देखने दुनिया भर से कई लोग आते हैं. दिल्ली की ऐतिहासिक जगहों में लाल किला, हुमायूं का मकबरा, पुराना किला समेत कई जगह शामिल हैं. इन्हीं में से एक मजनू का टीला भी है. नॉर्थ दिल्ली जिले में एक इलाका है, जिसका आधिकारिक नाम तो न्यू अरुणा नगर कॉलोनी है, लेकिन लोग इस जगह को ‘मजनू का टीला’ के नाम से जानते हैं. मजनू का टीले में एक तिब्बती लोगों की दुनिया बसती है.

मजनू का टीला अपने तिब्बती रेस्टोरेंट्स के लिए फेमस है. यहां आपको ऑथेंटिक तिब्बती भोजन मिलेगा. हालांकि ज्यादातर लोगों के मन ये सवाल जरूर आता होगा कि कैसे एक धार्मिक जगह का नाम ‘मजनू का टीला’ रख दिया गया ? और इसके पीछे क्या इतिहास है.

कैसे पड़ा नाम?

मजनू के टीले के नाम के पीछे की कहानी सिख धर्म से जुड़ी हुई है. माना जाता है कि 15 वीं सदी में इस सिकंदर लोदी का शासनकाल था. लोदी एक सूफी संत था, जो ईरान का रहने वाला था. उस वक्त यहां के लोग सूफी फकीर को मजनू कहते थे. लोदी इसी इलाके में एक टीले पर रहा करता था. ये जगह यमुना नदी के पास थी और वो शख्स परमात्मा के नाम पर लोगों को मुफ्त में नदी पार करवाने का काम करता था.

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ऐसे में लोदी के काल में यहां गुरु नानक आए. ऐसे में जब गुरु नानक ने जब मजनू का सेवा भाव देखा, तो बहुत खुश हुए और उसे आशीर्वाद दिया. गुरु नानक ने इसके बाद यहां एक टीला बनवा दिया, जिसे मजनू का टीले के नाम से जाना जाने लगा. बाद में 1783 में सिख मिलिट्री लीडर बघेल सिंह ने मजनू का टीला गुरुद्वारा बनवा दिया, क्योंकि यहां गुरु नानक देव जी रुके थे.

‘दिल्ली का नन्हा तिब्बत’

मजनू का टीला को ‘दिल्ली का नन्हा तिब्बत’ के नाम से भी जाना जाता है. यह जगह तिब्बत फूड, कपड़े, सामान, घर की सजावट लिए बहुत फेमस है. पतली और अंधेरी गलियों में बसे इस इलाके में हमेशा बहुत रौनक रहती है.