इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि सेवा में कन्फर्म हो चुके सिपाहियों की बिना विभागीय कार्यवाही किए सेवा समाप्त करना गलत है। ऐसे सिपाहियों की सेवा समाप्त करने से पूर्व उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की दंड एवं अपील नियमावली-1991 के नियम 14 (1) के तहत कार्यवाही करना जरूरी है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे कन्फर्म हो चुके सिपाही को केवल कारण बताओ नोटिस जारी कर उससे प्राप्त जवाब के आधार पर सेवा से निकालने का आदेश गलत होगा। यह आदेश जस्टिस सरल श्रीवास्तव ने अभिषेक सिंह चौहान व जस्टिस प्रकाश पाडिया ने अजीत कुमार व इस प्रकार की दाखिल कई सिपाहियों की याचिकाओं पर पारित किया है। कोर्ट ने उक्त फैसला के आधार पर सिपाहियों की बर्खास्तगी रद्द कर दिया है। प्रयागराज, बदायूं, गोरखपुर व आगरा में तैनात कन्फर्म हो चुके सिपाहियों को विभाग ने केवल कारण बताओ नोटिस जारी कर उनका जवाब लेने के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया था।
याचिकाकर्ता सिपाहियों के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम व अतिप्रिया गौतम का तर्क था कि कन्फर्म हो चुके सिपाही को बिना विभागीय कार्यवाही के सेवा समाप्ति का आदेश देना अवैधानिक है। कहा गया था कि 05 साल की कन्फर्म सेवा पूरी कर लेने के बाद सर्टिफिकेट के सही होने पर शक करते हुए बिना विभागीय कार्यवाही के सेवा समाप्ति का आदेश देना अवैधानिक है।
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मामले के अनुसार याची सिपाहियों को पुलिस विभाग में एसपी कार्मिक, उत्तर प्रदेश इलाहाबाद के आदेश से 20 सितम्बर 2015 को अस्थाई रूप से चयनित किया गया था। बाद में सम्बन्धित जिलों के एसएसपी ने मई 2016 में उन्हें नियुक्ति दे दी थी। उसके बाद इन सिपाहियों ने दो वर्ष की अपनी ट्रेनिंग पूरी कर आरक्षी के पद पर कन्फर्म हो गये। ये सभी याची सिपाही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोटे में नियुक्त हुए थे और सभी ने 05 साल की सेवा पूरी कर ली थी। 05 साल बीतने के बाद इन सिपाहियों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सर्टिफिकेट के सही होने पर शक करते हुए, उन्हें कारण बताओ नोटिस देकर जवाब मिलने के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।