हिंदी भाषा की वजह से एकजुट होते दिख रहे उद्धव और राज ठाकरे…दोनों ने जताई इच्छाएं

भाजपा के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के निर्णय पर उठे विवाद की वजह से एक बार फिर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एकजुट होते दिखाई दे रहे हैं।

फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के साथ एक पॉडकास्ट में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने कहा कि वह महाराष्ट्र के हितों की रक्षा और मराठी भाषा को संरक्षित करने के लिए छोटे-मोटे विवादों को दरकिनार करने को तैयार हैं।

2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के साथ गठबंधन करने वाले मनसे प्रमुख ने कहा कि अगर शिवसेना प्रमुख तैयार हों तो उन्हें उद्धव ठाकरे के साथ काम करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।

राज ठाकरे ने कहा कि जब बड़े मुद्दे उठते हैं, तो हमारे बीच विवाद और झगड़े छोटे होते हैं। महाराष्ट्र और मराठी लोगों के लिए, हमारे बीच संघर्ष महत्वहीन हैं। एक साथ आना कोई मुश्किल काम नहीं है, लेकिन असली सवाल ऐसा करने की इच्छा का है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि यह उनकी व्यक्तिगत इच्छा या व्यक्तिगत हितों के कारण नहीं था। उन्होंने कहा कि बड़ी तस्वीर को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है।

राज ठाकरे को कभी अपने चाचा और दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन पार्टी पर नियंत्रण को लेकर उद्धव ठाकरे से विवाद के चलते उन्होंने 2005 में शिवसेना छोड़ दी थी। अगले साल राज ने मनसे का गठन किया।

उद्धव ठाकरे की प्रतिक्रिया

अपने चचेरे भाई की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उद्धव ने कहा कि वह भी छोटे-मोटे झगड़े को दरकिनार कर मराठी समुदाय के हित में एकजुट होने को तैयार हैं।

हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख ने शर्त रखी कि वे उन लोगों को घर आमंत्रित नहीं करेंगे और भोजन नहीं कराएंगे जो महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करते हैं – संभवतः उनका इशारा भाजपा और उसके महायुति सहयोगियों की ओर था।

उद्धव ने कहा कि मैं भी छोटे-मोटे झगड़ों को किनारे रखकर मराठी समुदाय के हित में एकजुट होने को तैयार हूं। लेकिन एक शर्त है। सबसे पहले यह तय करें कि आप महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करने वालों को घर बुलाकर खाना नहीं खिलाएंगे और उसके बाद ही राज्य के कल्याण की बात करेंगे।

उद्धव ठाकरे ने मनसे प्रमुख को 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए को उनके समर्थन की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि जब मैं लोकसभा चुनाव के दौरान कह रहा था कि उद्योगों को महाराष्ट्र से गुजरात ले जाया जा रहा है, अगर उस समय विपक्ष होता तो आज केंद्र में भाजपा की सरकार नहीं होती। यहां तक ​​कि राज्य में भी ऐसी सरकार होती जो महाराष्ट्र के हितों के बारे में सोचती। तब आपने उनका समर्थन किया था।

आखिर यह विवाद किस बात को लेकर है?

राज ठाकरे द्वारा उद्धव से संपर्क साधने के पीछे महाराष्ट्र सरकार का राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का फैसला है। दो भाषाओं के अध्ययन की सामान्य प्रथा से हटकर इस कदम ने क्षेत्रीय नेताओं और पार्टियों के विरोध की आग को भड़का दिया है।

मनसे और उद्धव सेना ने मराठी के महत्व को कम करते हुए हिंदी थोपने के लिए देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की आलोचना की है। इस फ़ैसले का बचाव करते हुए देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मराठी पहले से ही अनिवार्य थी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का मानना ​​है कि एक संचार भाषा होनी चाहिए और इसीलिए यह फ़ैसला लिया गया है।