पवनपुत्र हनुमान को प्रभु श्री राम का परम भक्त माना जाता है। राम भक्त हनुमान के बिना रामायण की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। कहा तो यहां तक जाता है कि जैसे दुनिया श्री राम के बगैर नहीं चल सकती और राम जी हनुमान के बगैर नहीं चल सकते। आज राम नवमी के अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर राम भक्त हनुमान की अपने प्रभु से भेंट कहां हुई थी, दोनों कैसे मिले थे? यह एक ऐसा सवाल है जो कई बार हम सभी के दिमाग में आया होगा। आइए जानते हैं-
माता सीता के हरण से घटनाक्रम की हुई शुरुआत
महर्षि वाल्मिकी के रामायण में इस पूरे घटनाक्रम का जिक्र हैं। वनवास के दौरान जब रावण पंचवटी (महाराष्ट्र में नासिक के पास) से माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ सोने की लंका में ले गए, तो प्रभु श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण हैरान-परेशान होकर वनों में भटकने लगे। इसी क्रम में एक दिन दोनों शबरी की कुटिया में जा पहुंचे, जो स्वयं प्रभु श्री राम की एक बहुत बड़ी भक्त थीं। शबरी ने उन्हें दक्षिण दिशा की ओर जाने की सलाह दी।
रास्ते में श्री राम ने किया कबंध राक्षस का उद्धार
इसी रास्ते प्रभु श्री राम राक्षस कबंध से मिले, जिसने प्रभु के बारे में पहले से ही सुन रखा था। कबन्ध एक गन्धर्व था जो दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण राक्षस बन गया था। श्री राम ने उसका वध कर राक्षस योनि से उसका उद्धार किया। इसके बाद कबंध ने श्री राम से सुग्रीव से मित्रता करने की बात कही। एक तरफ दोनों भाई जंगलों में माता सीता की तलाश में भटक रहे थे, वहीं दूसरी ओर किष्किंधा के दो वानरराज भाइयों बाली और सुग्रीव के बीच जमकर युद्ध हुआ।
बाली से डरकर भागे सुग्रीव
इस दौरान सुग्रीव ने जान बचाने के लिए ऋष्यमूक पर्वत की एक गुफा में जाकर छिप गया। ऐसा माना जाता है कि यहीं पर हनुमान जी की माता अंजना और पिता केसरी रहते थे। राम और लक्ष्मण ने शबरी और कबंध की बातों को ध्यान में रखते हुए ऋष्यमूक पर्वत की ओर चल पड़े। उन्हें पर्वत की ओर आता देख सुग्रीव ने सोचा कि ये दोनों जरूर बाली के भेजे हुए मानव हैं, जो उन्हें मारने के लिए यहां आ रहे हैं।
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सुग्रीव ने हनुमान से कही ये बात
सुग्रीव डर गए। उन्होंने तुरंत हनुमान जी को बुलाया और कहा कि पहाड़ की ओर दोनों बेहद बलशाली और तेजस्वी मनुष्य आ रहे हैं। ये बाली की तरफ से हो सकते हैं। तुम ब्रह्मचारी का भेष धारण कर इनके पास जाओ और इनके मन में क्या है इस बात का पता लगाओ। सुग्रीव की आज्ञा का पालन करते हुए हनुमान जी ने तुरंत ही ब्राह्मण का रूप धारण कर उनके पास पहुंच गए। प्रभु श्री राम और लक्ष्मण के सामने उनके सामने मस्तक नवाते हुए उन्होंने पूछा, हे वीर! सांवले और गोरे शरीर वाले आप कौन हैं जो क्षत्रिय के रूप में वन में घूम रहे हैं।