पीएम केयर्स फंड की पारदर्शिता को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में दायर एक याचिका पर पीएमओ द्वारा दिए एक पेज के जवाब पर अदालत ने नाराजगी जताई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने पीएम केयर्स के कानूनी ढांचे से जुड़े सवाल को “महत्वपूर्ण” बताया। वहीं प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से दिये गये एक पेज के जवाब पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को आपत्ति जताई।

मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा, “आपने मामले में जवाब दाखिल किया है। इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर सिर्फ एक पेज? यह केवल एक पृष्ठ का उत्तर है। एक प्रदीप कुमार श्रीवास्तव (अवर सचिव, प्रधान मंत्री कार्यालय) का हलफनामा है यह। इससे आगे कुछ नहीं? इतना महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसपर सिर्फ एक पेज का जवाब है। इसपर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल की जानी चाहिए थी।”
अदालत ने क्या कहा: अदालत ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “आप उचित तरीके से जवाब दाखिल करें। यह मामला इतना आसान नहीं है। हमें इसपर विस्तृत जवाब चाहिए। क्योंकि यह मामला शीर्ष अदालत में भी जाएगा। हमें उठाए गए प्रत्येक बिंदु पर एक आदेश पारित करना होगा।”
4 सप्ताह का दिया समय: अदालत ने अधिकारियों को चार सप्ताह के भीतर इस मामले में “विस्तृत जवाब” दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले को 16 सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया है।
याचिका में की गई मांग: पीएम केयर्स फंड को लेकर याचिकाकर्ता सम्यक गंगवाल ने वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान के जरिए मांग की है कि इस फंड को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत सरकार की संस्था घोषित किया जाये। इसके अलावा फंड की समय-समय पर पीएम केयर्स वेबसाइट पर आडिट रिपोर्ट को भी जारी किया जाये।
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इससे पहले इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय के एक अवर सचिव की तरफ से एक हलफनामा दायर किया गया था। जिसमें बताया गया था कि पीएम केयर्स ट्रस्ट में अपने कार्यो का निर्वहन कर रहे हैं। इसमें पारदर्शिता है और फंड का आडिट एक लेखा परीक्षक द्वारा किया जाता है।
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