बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता और ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने वाले नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि तालिबान को लेकर भारत ही नहीं दुनिया में मुस्लिमों के एक वर्ग द्वारा समर्थन दिए जाने या कथित तौर पर खुशी जताए जाने के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया। शाह ने कहा कि ऐसे माहौल में नफरत का जहर आसानी से घोला जा सकता है। शाह ने कहा, मैंने पूरे मुस्लिम समुदाय को लेकर ऐसी कोई बात नहीं की थी लेकिन उन्हें दुख है कि इसको लेकर कट्टरपंथियों ने उन पर हमला बोल दिया। जबकि उन्होंने पूरे मुस्लिम समुदाय को कठघरे में खड़ा करने वाला कोई बयान नहीं दिया था।

नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि उन्होंने सिर्फ समुदाय के कुछ लोगों द्वारा ऐसा करने को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी। इनमें से एक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य भी थे, जिन्होंने खुल तौर पर तालिबान के समर्थन को लेकर बयान दिया था। शाह ने कहा कि लड़कियों की शिक्षा, पहनावे और खेलों को लेकर तालिबान का जो बयान आया है, उससे यह यकीन नहीं किया जा सकता कि वो आधुनिककरण की राह पर हैं।
तालिबान का इतिहास हमें उन पर यकीन करने की कोई बुनियाद कायम नहीं करता है। नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि मुस्लिमों के एक वर्ग पर उनके बयान को लेकर हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा उनका समर्थन किया गया और वो खुश हैं कि एक मुस्लिम दूसरे को कठघरे में खड़ा कर रहा है, लेकिन मुझे उनकी किसी तारीफ की जरूरत नहीं है।
उन्हें यकीन है कि तालिबान अपने रुख से नहीं बदलेगा और यही वजह है कि इस मुद्दे पर उन्होंने अपनी राय रखी। ऐसी सोच रखने वाले बहुत से लोग हो सकते हैं। तालिबान ने पंजशीर पर कब्जा जमा लिया है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के निकट है औऱ कौन जाने उनका आगे अगला कदम क्या होगा…नसीरुद्दीन ने कहा कि उनके बयान को लेकर जो लोग आगबबूला हैं, वो देखकर वो दुखी हैं।
नसीरुद्दीन शाह से सवाल किया गया कि लोगों को लगता है कि भारत में तालिबान का समर्थन या सहानुभूति जताने वाले लोग न के बराबर हैं, लेकिन जब उनके जैसा कोई बुद्धिजीवी इस मुद्दे को उठाता है तो यह प्रतीत होता है कि ऐसा बड़े पैमाने पर हो रहा है। शाह ने इस पर कहा कि जंगल की आग को फैलने में देर नहीं लगती। ऐसी ताकतों के लोगों की मानसिकता को प्रभावित करने में देर नहीं लगती। यही वजह है कि हो सकता है कि ऐसा सोचने वाले बहुत कम लोग हों, लेकिन उन्होंने इस पर अपनी राय रखी।
नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि ज्यादातर लोग अफगानिस्तान पर काबिज तालिबान को लेकर उनके बयान से नाराज नहीं हैं, बल्कि उन्होंने सुधार की जो बातें कही हैं, उसको लेकर उनका गुस्सा उन्हें परेशान करने वाला है। समुदाय में ऐसे सुधारों या आधुनिकीकरण के विरोधियों के रुख की उन्हें परवाह नहीं है।
शाह ने कहा, मैंने भारतीय इस्लाम की बात कही है, जिससे उनका मतलब उदारवादी सहिष्णु सूफीवाद से प्रभावित परंपरा है, जिसने हमें महान साहित्य, कलाकृति और अन्य चीजें दी हैं, जिसकी मोइनुद्दीन चिश्ती और निजामुद्दीन औलिया जैसी शख्सियतें नुमाइंदगी करती हैं। भारतीय इस्लाम वो धर्म नहीं है, जो कानून के शासन की बुनियाद को खत्म करने की बात करता हो।
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हालांकि जब यह पूछा गया कि आपके और जावेद अख्तर जैसी सुधारवादी सोच रखने वाले लोग बहुत कम हैं। साथ ही यह तर्क भी दिया जाता है कि ऐसी बात कहने वाले इस्लाम की बुनियादी रवायतों का पालन नहीं करते हैं और उनकी बात बहुत मायने नहीं रखती है?
इस सवाल पर शाह ने कहा कि हमारे खिलाफ आम असंतोष यही है कि हम इस्लाम की इबादत या अन्य बुनियादी रवायतों का भी पालन नहीं करते हैं, लेकिन हमें गर्व है कि हम एक सांस्कृतिक पहचान को आगे बढ़ा रहे हैं। मैं इस्लाम की अच्छाइयों और उसूलों को मानने और पालन करने वालों में से हूं।
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