चीन को लेकर भारत की ‘मनमोहन सिंह वाली नीति’? ताइवान पर अभी तक क्यों नहीं आया बयान, जानिए

चीन जिस अंदाज में ताइवान स्ट्रेट में बमों की बारिश कर रहा है और जिस तरह से ड्रैगन ने ताइवान को ब्लॉक किया है, उससे आशंका बन रही है, कि किसी भी वक्त चीन ताइवान पर आक्रमण कर सकता है और चीनी मीडिया लगातार ताइवान और अमेरिका के खिलाफ आग उगल रहा है। वहीं, ताइवान के खिलाफ चीनी आक्रामकता की दुनियाभर में निंदा की जा रही है, लेकिन, भारत ने अभी तक अपने सबसे बड़े दुश्मन के खिलाफ एक बयान तक जारी नहीं किया है, जिसको लेकर सवाल उठ रहे हैं और पूछा जा रहा है, कि क्या भारत अपने दुश्मन चीन के खिलाफ भी दोस्त ‘रूस वाली नीति’ अपना रहा है।

नई दिल्ली की खामोशी का क्या मतलब?

ताइवान के जलडमरूमध्य में काफी तेजी से स्थिति में परिवर्तन हो रहा है और तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। चीन पिछले 30 घंटे से ज्यादा वक्त से भीषण हथियारों के साथ लाइव ड्रिल और सैन्य अभ्यास कर रहा है। वहीं, चीन 6 समुद्री दिशाओं से ताइवान को ब्लॉक कर चुका है और मंगलवार से चीन नये स्तर पर सैन्य अभ्यास करने वाला है, जिसको लेकर ग्लोबल टाइम्स ने कहा है, कि ये असली युद्ध की तरह ही है। वहीं, एशिया में पैदा हुए इस तनाव को लेकर तमाम अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, लेकिन अभी तक नई दिल्ली की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है और ऐसा लगता है, कि भारत ने इस तनाव को ‘खामोशी से पढ़’ रहा है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पेन्ह के नोम में हो रहे एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस यानि आसियान सम्मेलन में इस संवेदनशील विषय का जिक्र तक नहीं किया और कोई बयान जारी नहीं किया।

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जानबूझकर बयान नहीं दे रहा भारत?

वहीं, पड़ोस जारी भयानक तनाव के बावजूद भारत की खामोशी को लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है, कि भारत का इस मुद्दे पर चुप रहना जानबूझकर लिया गया फैसला है, क्योंकि नई दिल्ली, अमेरिका और चीन के बीच एक संवेदनशील मुद्दे पर विवाद से बचने का प्रयास करती है, और यह भी देखते हुए कि भारत ने इस क्षेत्र के अन्य देशों के विपरीत साल 2010 के बाद से ‘एक चीन नीति’ का संदर्भ नहीं दिया है और ऐसा लग रहा है, कि भारत ‘वन चायना पॉलिसी’ से अब दूर जा रहा है, लिहाजा भारत इस संवेदनशील मुद्दे से बचने की कोशिश कर रहा है। गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भाग लिया और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और वियतनाम के विदेश मंत्रियों के साथ बातचीत की।