कई देशों में एक बार फिर कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं। संक्रमण की चपेट में आने वाले ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने कोविड वैक्सीन की एक या दोनों डोज ली हुई हैं। इसके साथ ही जो सबसे बड़ा खतरा इस समय है वह है तीसरी लहर की संभावना। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और केंद्र सरकार का मानना है आने वाले तीन महीने इस लहर के हिसाब से काफी नाजुक हैं।
इस दौरान कई सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या वैक्सीन कोविड संक्रमण से बचाने में कारगर नहीं है? बाहर देशों में बढ़ते मरीजो का देश पर किस तरह असर पड़ेगा? क्या कोरोना की इस लहर को टाला नहीं जा सकता है? ऐसे में कोविड से जुड़े विभिन्न सवालों को लेकर फिजिशियन और एपिडिमेयोलॉजिस्ट (पब्लिक पॉलिसी और हेल्थ सिस्टम विशेषज्ञ) डॉ। चन्द्रकांत लहरिया बता रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर के लिए आखिर कौन सी चार बातें प्रमुख हैं, जिनका ध्यान रखा जाए तो इस लहर को टाला जा सकता है।
सवाल- क्या भारत में भी तीसरी लहर का आना तय है? इस लहर के लिए क्या चीजें जिम्मेदार हो सकती हैं।
जवाब- इस बारे में हमें यह समझना होगा कि एसएआरएस सीओवीटू जब तक हमारे आसपास रहेगा और लोग इससे संक्रमित होगें तब तक नई लहरों के आने की आशंका बनी रहेगी। तीसरी लहर (Third Wave) कब आएगी और इसकी तीव्रता कितनी होगी यह मुख्य रूप से चार बातों पर निर्भर करेगा।
अगर कोरोना अनुरूप व्यवहार का पालन किया जाए तो कोरोना की तीसरी लहर को रोकने में कामयाबी पाई जा सकती है।
-पहला हमारी आबादी का कितना प्रतिशत हिस्सा कोविड संक्रमित होने के बाद प्राकृतिक एंटीबॉडी प्राप्त कर चुका है या कितने प्रतिशत लोगों ने वैक्सीन लगवा ली है।
-दूसरा, कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन लोग कितनी गंभीरता से कर रहे हैं?
-तीसरा कोविड वायरस के नये वेरिएंट्स की क्या स्थिति है क्या यह अधिक संक्रामक और गंभीर हैं?
-चौथा कुल आबादी के कितने प्रतिशत हिस्से को कोविड का वैक्सीन दिया जा चुका है।
सवाल- क्या तीसरी लहर को टाला नहीं जा सकता ?
जवाब- ऊपर कही गई अन्य बातों को छोड़ दिया जाएं तो दूसरे तथ्य को अपनाना हमारे हाथ में है। अगर हम सभी गंभीरता से कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करेंगें तो निश्चित रूप से तीसरी लहर को टाला जा सकता है। इसके साथ ही अगर टीकाकरण की गति को बढ़ा दिया जाए तब भी हम तीसरी लहर से बच सकते हैं। वायरस के संदर्भ में अभी भी कुछ ऐसी बातें जिसके बारे में हमें अधिक नहीं पता है जैसे कि कोविड के अब किस नये वेरिएंट का हमला होगा? इनती अधिक अनिश्चितता के बावजूद महामारी से लड़ने का केवल एक ही बेहतर माध्यम है और वह है कोविड अनुरूप व्यवहार का नियमित रूप से पालन करना, जबतक कि विश्व की आधी से अधिक जनता को कोविड का वैक्सीन नहीं दे दिया जाता। अगर हम ऐसा कर लेते हैं तो कोविड की तीसरी क्या अन्य कई लहरों का सामना कर सकते हैं।
सवाल- भारत सरकार ने कोविड वैक्सीन की दो डोज के बीच के अंतराल में कई बार बदलाव किया है, क्या इससे कोविड टीकाकरण अभियान पर असर पड़ेगा?
जवाब- हमारे पास इस तरह के साक्ष्य भी हैं जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि कोविशील्ड की एक डोज भी संक्रमण के प्रति पर्याप्त रूप से एंटीबॉडी विकसित करने मे मदद करती है। वैक्सीन से हम संक्रमण से होने वाली मौत और मरीज के अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत को कम कर सकते हैं। एंटीबॉडी के रूप में तैयार सुरक्षा कवच तीन महीने से एक साल या इससे अधिक समय तक रह सकता है। इसलिए जब भारत में कोविशील्ड की दो डोज के बीच का अंतराल बढ़ाकर 12 हफ्ते कर दिया, तो इसका सीधा मतलब है कि अंतराल बढ़ाने से अधिक लोगों को कोविड टीकाकरण का लाभ दे सकते हैं।
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वैक्सीन की दोनों डोज के बीच अंतराल बढ़ाने का का मकसद कम समय में अधिक आबादी को कोविड का वैक्सीन देकर अस्पताल मे भर्ती होने वाली मरीजों की संख्या में कमी करना और संक्रमण से होने वाली मृत्यु दर का कम करना है। फिर इसके साथ लोगों की यह भी धारण है कि कोविड वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ अधिक कारगर नहीं होगी, हालांकि इंग्लैंड या यूके में प्रयोग की गई एस्ट्रोजेनिका कोविड वैक्सीन (जिसे भारत में कोविशील्ड के नाम से लांच किया गया)को कोविड के डेल्टा वेरिएंट के प्रति भी प्रभावकारी माना गया है, इंग्लैंड के आंकड़ों के अनुसार एस्ट्रोजेनिका की केवल एक डोज को भी 71 प्रतिशत प्रभावकारी माना गया।