180 साल पुरानी नूरी जामा मस्जिद पर मंडरा रहा ख़तरा, खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा

उत्तर प्रदेश की एक और मस्जिद का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया है। हालांकि इस बार हाईकोर्ट का दरवाजा किसी हिंदूवादी संगठन ने नहीं, बल्कि खुद मस्जिद की प्रबंधन समिति ने खटखटाया है। यह मामला फतेहपुर में स्थित नूरी जामा मस्जिद का है, जिसकी प्रबंधन समिति ने यूपी सरकार की सड़क चौड़ीकरण परियोजना के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।

नूरी जामा मस्जिद  के हिस्से को पीडब्ल्यूडी ने किया चिह्नित

नूरी जामा मस्जिद फतेहपुर जिले के लालौली गांव में स्थित है। यह कथित तौर पर 180 साल पुरानी है। एनएच 335 के दोनों ओर चौड़ीकरण परियोजना के तहत, नूरी जामा मस्जिद के 150 वर्ग फुट हिस्से को यूपी पीडब्ल्यूडी द्वारा ध्वस्त करने के लिए चिह्नित किया गया है। दोनों ओर 40 फुट क्षेत्र के साथ 2 किमी का खंड विकसित किया जा रहा है।

मस्जिद समिति ने अपील की है कि सड़क चौड़ीकरण परियोजना के लिए मस्जिद के एक हिस्से को ध्वस्त करने की यूपी पीडब्ल्यूडी की योजना मस्जिद के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नुकसान पहुंचाएगी और इसे रोका जाना चाहिए।

अधिवक्ता सैयद अज़ीम उद्दीन के माध्यम से दायर की गई याचिका

अधिवक्ता सैयद अज़ीम उद्दीन के माध्यम से दायर याचिका में प्रार्थना की गई है कि उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह मस्जिद को जारी किए गए नोटिस के तहत कोई कार्रवाई न करे।

याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि वह उसके समक्ष प्रस्तुत किए गए प्रतिवेदन पर विचार करे और निर्णय ले, जिसमें नूरी जामा मस्जिद को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित करने की प्रार्थना की गई है।

याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि वह उसके समक्ष प्रस्तुत किए गए प्रतिवेदन पर विचार करे और निर्णय ले, जिसमें नूरी जामा मस्जिद को प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित स्मारक घोषित करने की प्रार्थना की गई है।

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आज होगी मामले की सुनवाई

याचिका पर कल न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ के समक्ष सुनवाई होगी। इसमें नूरी जामा मस्जिद को गिराए जाने से रोकने और विरासत स्थल के रूप में इसकी मान्यता और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए उच्च न्यायालय से तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया है ।