त्रेतायुग से जारी है गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेले की परंपरा, जानें इसकी मान्यता

गोरखनाथ मंदिर और वहां का खिचड़ी पर्व, दोनों ही पूरी दुनिया में मशहूर हैं। त्रेतायुग से जारी बाबा गोरखनाथ को मकर संक्रांति की तिथि पर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा की सूत्रधार गोरक्षपीठ ही है। मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर लगने वाले विश्व प्रसिद्ध खिचड़ी मेले की तैयारियों का जायजा लिया। समूचे मंदिर परिसर व मेला परिसर का स्थलीय निरीक्षण करते हुए मुख्यमंत्री ने हर एक व्यवस्था की जानकारी ली और संबंधित जिम्मेदारों को निर्देशित किया कि श्रद्धालुओं की सुविधा, सहूलियत वसुरक्षा में किसी प्रकार की कोताही नहीं होनी चाहिए।

मकर संक्रांति पर होने वाले इस खिचड़ी मेले की मान्यता ऐसी है कि दूर दराज से लोग यहां पहुंचते हैं। इस दिन उत्तर प्रदेश, बिहार तथा देश के विभिन्न भागों के साथ-साथ पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु शिवावतारी बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाते हैं। सबसे पहले बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाई जाती है। सबसे पहले गोरक्षपीठकी तरफ से पीठाधीश्वर खिचड़ी चढ़ाते हैं। ततपश्चात नेपाल नरेश के परिवार की ओर से आई खिचड़ी बाबा को चढती है। इसके बाद जनसामान्य की आस्था खिचड़ी के रूप में निवेदित होगी।

हर साल की भांति मकर संक्रांति को लेकर गोरखनाथ मंदिर में शिववतारी बाबा को खिचड़ी चढ़ाने की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। मंदिर की सतरंगी छटा देखते ही बन रही है तो समूचा मेला परिसर सजी धजी दुकानों से उल्लसित है। अगले कुछ दिनों तक यहां उमड़ने वाली श्रद्धा और भक्ति में समरस भाव की झलक दिखेगी। यह आस्था का सैलाब न सिर्फ पूर्वांचल का है, बल्कि सीमावर्ती प्रदेशों के साथ मित्र देश नेपाल का भी है। मान्यता है कि नेपाल नरेश की पहली खिचड़ी यहां चढ़ाई जाती है।

यह भी पढ़ें: जमा देने वाली ठंड की कर ले पूरी तैयारी,-4 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है तापमान

ये है मान्यता

बताते हैं कि गुरु गोरखनाथ एक बार कांगड़ा में ज्वाला देवी के दरबार में गए और जब देवी ने उन्हें भोजन के लिए कहा तो गुरु गोरखनाथ बोले कि वे केवल खिचड़ी खाते हैं। आप पानी गरम कीजिए, बाकी सामग्री लेकर आते हैं। गुरु गोरखनाथ वहां से निकले तो गोरखपुर आ गए और धुनी रमा कर खप्पर रख दिया। मकर संक्रांति का दिन था और लोग उनका खप्पर भरने आने लगे। लोग खप्पर में खिचड़ी डालने लगे लेकिन पर वह भरा नहीं। इसके बाद गुरु गोरखनाथ ने अपने खप्पर से आए हुए सभी भक्तों को खिचड़ी खिलाई। तब से खिचड़ी चढ़ाने की शुरू हुई परंपरा चली आ रही है।