केंद्र सरकार में एक तरफ नौकरी लेने वालों की कतार लंबी हो रही है तो दूसरी ओर सरकारी नौकरियों पर लगातार कैंची चलना जारी है। केंद्र में 11 लाख तो सार्वजनिक उद्यमों में 4 लाख पद खाली पड़े हैं। अब यह गारंटी भी नहीं है कि ये सभी पद भरे जाएंगे या नहीं। एआईटीयूसी के राष्ट्रीय सचिव और अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी.श्रीकुमार के मुताबिक, वर्तमान सरकार ने आश्वासन दिया था कि देश के बेरोजगार युवाओं को हर साल 2 करोड़ नौकरियां उपलब्ध कराई जाएंगी।
2012-13 से 2021-22 की अवधि के लिए हाल ही में प्रकाशित सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चलता है कि केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, सरकारी निगम और सरकारी सहायक कंपनियां, जो 17.3 लाख लोगों को नौकरियां प्रदान कर रहे थे, मार्च 2022 के दौरान घटकर वह संख्या 14.6 लाख रह गई है।
सात उद्यमों में खत्म हो गए 3.84 लाख रोजगार
गत सप्ताह कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी ने भी अपने ट्वीट में लिखा था, कांग्रेस सरकारों ने देश में रोजगार देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की उम्दा कंपनियां बनाईं थीं। मोदी सरकार में उन कंपनियों की हालत खराब हो गई है। सार्वजनिक क्षेत्र के सात उद्यमों में 3.84 लाख रोजगार खत्म हो गए। इन उद्यमों में ठेके व संविदा वाले कर्मचारियों की संख्या 19 प्रतिशत से बढ़कर 42 प्रतिशत हो गई है। अच्छी नौकरियां देने वाली इन कंपनियों से रोजगार खत्म क्यों किया जा रहा है। देश निर्माण में महत्वपूर्ण सहयोग देने वाली इन कंपनियों को मोदी सरकार क्यों बर्बाद कर रही है। प्रियंका गांधी ने अपने ट्वीट में एक ग्राफ भी अटैच किया है। उसमें लिखा है कि बीएसएनएल में 181127, एसएआईएल में 61928, एमटीएनएल में 34997, एसईसीएल में 29140, एफसीआई में 28063, एयर इंडिया में 27985 और ओएनजीसी में 21120 नौकरियों में कमी आई है।
सीपीएसयू/निगमों में 42.5 प्रतिशत कार्यबल नियमित नहीं
एआईटीयूसी के राष्ट्रीय सचिव के मुताबिक, 389 सीपीएसयू में एक सर्वेक्षण किया गया था। इनमें से 284 उद्यम अभी भी चालू हैं। इनकी नौकरियों में 2.7 लाख से अधिक की भारी गिरावट आई है। कुल कार्यबल में से 17 प्रतिशत अनुबंध के आधार पर और 2.5 प्रतिशत स्टाफ, आकस्मिक और दैनिक वेतन के आधार पर काम कर रहा है। 2022 में अनुबंध श्रमिकों की संख्या बढ़कर 36 प्रतिशत हो गई है। वहीं आकस्मिक/दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों की संख्या बढ़कर 6.6 प्रतिशत है। इसका मतलब यह हुआ कि 2022 में सीपीएसयू और निगमों में 42.5 प्रतिशत कार्यबल अनुबंध, आकस्मिक या दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी के तौर पर कार्यरत है।
सर्वेक्षण से पता चलता है कि सात सीपीएसयू में स्थायी कर्मचारियों की संख्या काफी कम हो गई है। प्रमुख सीपीएसयू-बीएसएनएल में कर्मचारियों की संख्या जो 2013 में 2,55,840 थी, घटकर 1,81,127 हो गई है। सेल में 1,86,207 से घटकर 1,24,279 हो गई। मार्च 2022 के दौरान एमटीएनएल में वह संख्या 39,283 से 4,286, एफसीआई में 80,1672 से 52,104 और ओएनजीसी 49,366 से 28,246 हो गई है। भारत जैसे देश में जहां बेरोजगारी चरम पर है, वहां इस तरह से रोजगार घटना, बहुत चिंताजनक है।
रक्षा मंत्रालय में खाली पड़े हैं 2.9 लाख सिविल पद
सी. श्रीकुमार बताते हैं कि केंद्र में अकेले रक्षा मंत्रालय के सिविल पदों की बात करें तो 2.9 लाख पद खाली पड़े हैं। वे एआईडीईएफ की ओर से इन पदों को भरने के लिए लड़ रहे हैं। बैंकिंग और बीमा क्षेत्र में भी नौकरियों की स्थिति ठीक नहीं है। वर्ष 1994 के दौरान केंद्र सरकार के कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या 41.76 लाख थी, जो आज घटकर 30 लाख रह गई है। केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में 11 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। रेलवे में 3.5 लाख, रक्षा विभाग में 2.90 लाख और डाक विभाग में 1 लाख पद खाली पड़े हैं। ऐसा नहीं है कि इन विभागों में काम कम हो गया है, बल्कि पहले के मुकाबले काम कई गुना बढ़ा दिया गया है। आउट सोर्सिंग, ठेका श्रमिकों की तैनाती और आकस्मिक व दैनिक वेतन भोगी श्रमिक आदि के माध्यम से स्टाफ की कमी को पूरा किया जा रहा है।
सरकार खुद श्रम कानूनों का उल्लंघन करती है
श्रम कानूनों के तहत अनुबंध श्रमिकों को केवल मौसमी नौकरियों और सीमित अवधि की नौकरियों के लिए रखा जा सकता है। संविदा और कैज़ुअल श्रमिकों को स्थायी व बारहमासी नौकरियों पर तैनात नहीं किया जा सकता है। सरकार खुद इसका उल्लंघन करती है। श्रम कानूनों के तहत, नौकरी की कौशल आवश्यकता के आधार पर निर्धारित न्यूनतम वेतन अनुबंध श्रमिकों को अनिवार्य रूप से भुगतान किया जाना आवश्यक है।
हालांकि ठेकेदार, ऐसे कर्मचारियों के वेतन का 20 से 25 प्रतिशत हिस्सा ले लेते हैं। ठेकेदार ईपीएफ और ईएसआईसी अंशदान का भुगतान किए बिना आसानी से भाग जाता है। ऐसी स्थिति में अनुबंध कर्मचारी असहाय बने रहते हैं। जब किसी संविदा कर्मचारी की नौकरी करते समय दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार को बीमा कवरेज सहित कोई लाभ नहीं दिया जाता है।
क्या है 41 आयुध फैक्ट्रियों का भविष्य
श्रीकुमार सवाल उठाते हैं कि निगमों में बंटी 41 आयुध फैक्ट्रियों का भविष्य क्या है। जब 41 आयुध फैक्ट्रियों का निगमीकरण किया गया था तो उस वक्त अक्टूबर 2021 के दौरान 78 हजार कर्मचारी थे। आज वह संख्या 70,000 है। सरकार ने आयुध कारखानों में कोई नई भर्ती नहीं करने का फैसला किया है। आयुध निर्माणियों और सेना कार्यशालाओं में अनुकंपा नियुक्ति को भी एकतरफा तरीके से रोक दिया गया है। इसके खिलाफ एआईडीईएफ लगातार संघर्ष कर रहा है। मालूम चला है कि कुछ आयुध निर्माणी निगमों ने चार साल के अनुबंध पर पूर्व-प्रशिक्षित ट्रेड अपरेंटिस की भर्ती शुरू कर दी है। यहां पर सवाल उठता है कि चार साल बाद इन अप्रेंटिसों के भविष्य का क्या होगा। कौशल विकास के नाम पर हजारों युवा लड़के-लड़कियों को अप्रेंटिस ट्रेनिंग के नाम पर भर्ती किया जाता है, लेकिन उन्हें विश्व स्तरीय प्रशिक्षण देने के बजाय, अनुबंध श्रमिकों के रूप में उनका उपयोग किया जाता है। ये सब बहुत खतरनाक चलन है। इन श्रमिकों को किसी भी सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत कवर नहीं किया जाता। उनका छोटा कार्यकाल, कम योगदान अवधि और कम कमाई आदि के कारण, इन्हें श्रम कानूनों के तहत कवरेज प्राप्त करने के फायदों से बाहर रखा गया है।
स्थायी कर्मचारी नहीं तो उन पर निवेश भी नहीं
सी. श्रीकुमार ने कहा, एक और बुरा प्रभाव जो कौशल विकास पर प्रतिबिंबित होता है, वह यह है कि अनुबंध और आकस्मिक श्रमिकों को नौकरी पर कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। वजह, कोई भी नियोक्ता उन पर पैसा निवेश नहीं करना चाहता है, क्योंकि वे उनके स्थायी कर्मचारी नहीं हैं। सरकारी विभागों और सीपीएसयू में नौकरियों के आकस्मिककरण का सबसे खतरनाक प्रभाव यह है कि ओबीसी, एससी और एसटी के उत्थान के लिए संविधान में गारंटीशुदा नौकरियों में आरक्षण के रूप में सामाजिक न्याय समाप्त हो जाएगा।
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एक नियोक्ता के रूप में सरकार को इस देश के निजी क्षेत्रों और बहु-राष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक अच्छे मॉडल नियोक्ता के रूप में व्यवहार करना चाहिए। इसके विपरित सरकार ही स्वयं एक खराब मॉडल नियोक्ता बनती जा रही है। सत्ता में चाहे कोई भी दल हो, सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करेगी और रोजगार प्रदान करने व कर्मचारियों के हितों की रक्षा के मामले में एक अच्छे नियोक्ता की तरह व्यवहार करेगी। केंद्र सरकार के विभागों में खाली पड़े 11 लाख से अधिक पदों और 380 से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में खाली पड़े 4 लाख पदों को भरने के लिए तुरंत भर्ती कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।