बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना से पहले हुए एग्जिट पोल्स के नतीजे आने के बाद महागठबंधन की अगुवाई करने वाले राजद नेता तेजस्वी यादव अपनी जीत को लेकर कई तरह के दावे कर रहे थे, लेकिन चुनावी नतीजों ने तेजस्वी यादव के इन सभी दावों को मिथ्या साबित कर दिया और चिर प्रतिद्वंदी 110 सीटें लाकर विजयी हो गई। ।अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसे क्या कारण थे जो तेजस्वी यादव जीतते-जीतते हार गए। दरअसल, उनकी इस हार की एक बड़ी वजह हैं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), जिसने सीमांचल की सीटों पर राजद के वोटबैंक पर बड़ी सेंधमारी की।
बिहार चुनाव में चला एआईएमआईएम का जादू
दरअसल, बिहार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सीमांचल में बड़ी जीत दर्ज की है। बिहार के सीमांचल इलाक़े में 24 सीटे हैं जिनमें से आधी से ज़्यादा सीटों पर मुसलमानों की आबादी आधी से ज़्यादा है। सीमांचल की इन 24 विधानसभा सीटों में से एआईएमआईएम के खामें में पांच सीटें गई हैं। इन सीटों पर कई वर्षों से या तो राजद का वर्चस्व था या फिर कांग्रेस का। लेकिन इस बार यह सीटें एआईएमआईएम के खाते में गई जिससे महागठबंधन को खासा नुकसान उठाना पड़ा।
एआईएमआईएम ने जिन पांच सीटों पर जीत दर्ज की है, उनमें से पूर्णिया की अमौर सीट पर इस चुनाव से पहले कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान का अधिकार था। वह इस सीट पर पिछले 36 सालों से विधायक थे, लेकिन इस चुनाव में एआईएमआईएम के अख़्तर-उल-ईमान ने 55 फ़ीसद से अधिक मत हासिल कर अब्दुल जलील मस्तान को करारी मात दी।
ऐसी ही सीमांचल की बहादुरगंज सीट भी है। इस सीट पर कांग्रेस के तौसीफ़ आलम पिछले 16 सालों से विधायक थे। हालांकि इस बार एआईएमआईएम के अंज़ार नईमी ने उनसे उनकी बादशाहत छीन ली और 47 फ़ीसद से अधिक मत हासिल कर बड़ी जीत दर्ज की है।
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अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट आरजेडी का मजबूत गढ़ मानी जाती है, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी ने यहां से तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम के खिलाफ उनके छोटे भाई शाहनवाज आलम को उतारकर यह सीट अपने नाम कर ली। सरफराज आलम यहां से चार बार के विधायक रहे हैं, लेकिन इस बार अपने छोटे भाई की पतंग को नहीं काट सके।
इसके अलावा अन्य कई ऐसी सीटें और हैं, जहां एआईएमआईएम ने महागठबंधन को भारी चोट देते हुए उनके मुस्लिम वोटबैंक पर भारी चोट पहुंचाई है। बिहार में AIMIM ने 20 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से 14 सीटें सीमांचल के इलाके की थीं जबकि बाकी सीटें मिथिलांचल की थीं।