असम चुनाव में बीजेपी को मिली बड़ी जीत, लेकिन दो दिग्गजों के बीच फंसा है पेंच

असम में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। यहाँ बीजेपी ने एक बार फिर कांग्रेस को हार का स्वाद चखाते हुए जीत का परचम लहराया है। हालांकि इस जीत के साथ ही बीजेपी के सामने एक बड़ी मुश्किल भी खड़ी हो गई है। दरअसल, असम में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए चेहरे का चयन करना बीजेपी के लिए मुश्किल हो रहा है।

असम में मुख्यमंत्री पद को लेकर शुरू हुई जद्दोजहद

दरअसल, असम के सियासी जगत के दो बड़े नाम सर्बानंद सोनोवाल और हेमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे हैं, लेकिन इन दोनों में से मुख्यमंत्री पद का ताज सिर्फ एक ही पहन सकता है। ऐसे में बीजेपी के लिए इस नाम का चयन करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

दरअसल, इन दोनों ही सियासी दिग्गजों ने असम विधानसभा चुनाव में मिली जीत में अहम भूमिका निभाई है। वर्ष 2016 में जब बीजेपी कांग्रेस को हराकर सत्ता पर विराजमान हुई थी तब उन्होंने सर्बानंद सोनोवाल को सीएम पद की जिम्मेदारी सौंपी थी। हालांकि, उस वक्त बीजेपी ने चुनाव से पहले ही सोनोवाल के रूप में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम की घोषणा कर दी थी। उसके पहले वह मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री पद पर आसीन थे। अब उनके मुख्यमंत्री रहते हुए बज एक बार फिर सत्ता में वापसी करने में कामयाब हुई है

वहीँ अगर बात हेमंत बिस्वा सरमा की करें तो इस बार वह भी असम की राजनीति में एक अहम चेहरा बनकर उभरे हैं। इस बार पार्टी को मिली जीत में भी उनकी अहम भूमिका बताई जा रही है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने के बाद से सरमा का पार्टी में सियासी कद भी काफी ऊपर गया है और पार्टी में उनके समर्थकों की संख्या भी काफी बड़ी है। माना जा रहा है कि सरमा के कांग्रेस छोड़ने की वजह भी मुख्यमंत्री पद ही है।

कांग्रेस में तरुण गोगोई की मौजूदगी में सरमा का मुख्यमंत्री बनना मुश्किल था, इसी वजह से उन्होंने बीजेपी का दामन थामा था। पांच साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में सरमा चाहते थे कि उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए लेकिन ऐसा कर बीजेपी किसी नए भीतरी विवाद को जन्म नहीं देनाचाहती थी।

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हालांकि, पांच साल के बाद असम के सियासी हालात काफी बदल गए हैं। सोनेवाल के ऊपर आरोप लगता रहा है कि वो विधायकों और क्षेत्रीय नेताओं के साथ कोई समन्वय नहीं बना पा रहे हैं। वहीं, हेमंत बिस्वा सरमा ने खुद को बीजेपी में न केवल स्थापित किया है बल्कि शीर्ष नेतृत्व तक यह संदेश पहुंचाने में सफल रहे हैं कि असम के साथ-साथ पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा की मजबूती के लिए वो ट्रंप कार्ड हैं।