राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) की तारीफ़ की है. यूनिवर्सिटी के छठे दीक्षांत समारोह में मुर्मू ने जेएनयू को देश की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बताया. मुर्मू ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में बहुत बड़ा योगदान दिया है. मुर्मू ने कहा कि जेएनयू को मैं एक सार्थक और ऐतिहासिक महत्व के रूप में देखती हूं कि जेएनयू ने 1969 में महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष में कार्य करना शुरू किया था.’’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘पूरे भारत के छात्र विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं और परिसर में एक साथ रहते हैं जो भारत और दुनिया के बारे में उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में मदद करता है. विश्वविद्यालय विविधता के बीच भारत की सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करता है.’’ उन्होंने कहा कि जेएनयू अपनी प्रगतिशील गतिविधियों और सामाजिक संवेदनशीलता, समावेशन एवं महिला सशक्तीकरण के संबंध में समृद्ध योगदान के लिए जाना जाता है. वहीं, मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि ‘‘यह एक शोध विश्वविद्यालय है. जेएनयू जैसा बहुविविध संस्थान देश में नहीं है. भारत सबसे पुरानी सभ्यता है और जेएनयू इस सभ्यता को आगे बढ़ा रहा है.
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, ‘‘जेएनयू के छात्रों और शिक्षकों ने शिक्षा और शोध, राजनीति, सिविल सेवा, कूटनीति, सामाजिक कार्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, मीडिया, साहित्य, कला एवं संस्कृति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली योगदान दिया है.’’ उन्होंने कहा कि बुनियादी आदर्शों में राष्ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक जीवनशैली, अंतरराष्ट्रीय समझ और समाज की समस्याओं को लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण शामिल हैं. राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय समुदाय से इन मूलभूत सिद्धांतों के पालन में दृढ़ बने रहने का आग्रह किया.
मुर्मू ने कहा कि चरित्र निर्माण भी शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है. उन्होंने कहा, ‘‘युवा छात्रों में जिज्ञासा, प्रश्न करने और तर्क के उपयोग की एक सहज प्रवृत्ति होती है. इस प्रवृत्ति को सदैव प्रोत्साहित करना चाहिए. विचारों को स्वीकार करना या खारिज करना, वाद-विवाद और संवाद पर आधारित होना चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि एक विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों को पूरे विश्व समुदाय के बारे में चिंतन करना होता है. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, युद्ध और अशांति, आतंकवाद, महिलाओं की असुरक्षा और असमानता जैसे अनेक मुद्दे मानवता के सामने चुनौतियां पेश कर रहे हैं. राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया, ‘‘जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को बनाए रखने, संविधान के मूल्यों का संरक्षण करने और राष्ट्र निर्माण के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपना प्रभावी योगदान देंगे.’’
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दीक्षांत समारोह में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार एके सूद और जेएनयू के कुलाधिपति विजय कुमार सारस्वत भी मौजूद थे. धर्मेन्द्र प्रधान ने जेएनयू को सर्वाधिक बहु-विविधता वाला संस्थान करार दिया, जहां देश के सभी हिस्सों से छात्र आते हैं. उन्होंने विश्वविद्यालय में बहस और चर्चा के महत्व पर भी जोर दिया. केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘यह एक शोध विश्वविद्यालय है. जेएनयू जैसा बहुविविध संस्थान देश में नहीं है. भारत सबसे पुरानी सभ्यता है और जेएनयू इस सभ्यता को आगे बढ़ा रहा है. देश में बहस और चर्चा महत्वपूर्ण हैं.’’ इस मौके पर जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने इस तथ्य पर जोर दिया कि विश्वविद्यालय में 52 प्रतिशत छात्र आरक्षित श्रेणियों- अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं. उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारा छठा दीक्षांत समारोह है. इस बार कुल 948 शोधार्थियों को डिग्रियां प्रदान की गई हैं. महिला शोधार्थियों की संख्या पुरुषों से अधिक है और 52 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी और ओबीसी जैसे आरक्षित वर्गों से हैं.’’