पितृपक्ष : हरिद्वार में भारी संख्या में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, असम के मुख्यमंत्री बोले- सनातन धर्म नहीं होगा समाप्त…

पितृपक्ष की अमावस्या के कारण आज 14 अक्टूबर यानी की शनिवार को हर की पैड़ी हरिद्वार में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ी है। अमावस्या पर स्नान करने का विशेष महत्व मिलता है। ऐसे में इस पुण्य का लाभ लेने के लिए सुबह-सुबह ही श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाने पहुंचे।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भी हरिद्वार के प्राचीन नारायणी शिला मंदिर में पूजा करने पहुंचे। यहां पितरों के लिए पूजन करने के बाद उन्होंने कहा कि सनातन कभी समाप्त नहीं हो सकता। उन्होंने आगे बताया कि वह हर साल अमावस्या के दिन प्राचीन नारायणी शिला मंदिर आने का प्रयास करते है। आज भी वह पितृ अमावस्या के अवसर पर नारायणी शिला मंदिर पहुंचे हैं।

इस दौरान उन्होंने सनातन धर्म पर की जा रही लगातार कड़वी बयान बाजी का जवाब देते हुए कहा कि कुछ लोग चाहते हैं कि सनातन और सनातन से जुड़ी परंपराएं इस देश में समाप्त हो जाए, लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि जब वह लोग भी इस धरती पर नहीं थे तब से सनातन धर्म था। करीब 5000 साल पूर्व से सनातन धर्म और उससे जुड़ी परंपराएं चलती आ रही है। सनातन धर्म की की परंपराएं आगे भी इसी तरह चलती रहेगी।

वहीं गठबंधन द्वारा की जा रही बयान बाजी पर उन्होंने कहा कि यह जो गठबंधन के लोग सनातन धर्म पर नकारात्मक बयानबाजी कर रहे है यह पाप का काम कर रहे हैं और इस पाप के लिए भारत के लोग उन्हें साल 2024 में जवाब अवश्य देंगे ।

ऐसा माना जाता है कि यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु कि तिथि ना पता हो तो वह पितृ पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या को पितरों को पिंडदान तर्पण कर सकता है। इससे पितरों को मुक्ति और मोक्ष मिलता है।

आज के दिन किया गया दान पुण्य कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है। नारायणी शिला के पंडित मनोज त्रिपाठी ने बताया कि पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध पक्ष में किसी भी। कारण से श्राद्ध नहीं कर पाता है तो वह इस पक्ष के आखिरी दिन पितृ विसृजनी अमावस्या को पिंडदान श्राद्ध आदि कर दे तो पितरों को सदगति प्राप्त होती है।

आपको बता दे, हरिद्वार में स्थित नारायणी शिला में भगवान श्री हरि नारायण की कंठ से नाभि तक का भाग है। नारायणी शिला के बारे में यह बताया जाता है कि यह श्री हरिनारायण का हृदय स्थल है। यहां पर आकर आप जो कुछ कहना चाहते हैं, वह भगवान को अपने हृदय में सुनाई देता है।