झरोखे से न झांक मोरी प्यारी ननदिया…

लोक चौपाल: ननद भौजाई रिश्तों के मनोविज्ञान पर चर्चा, ननद भौजाई की नोक-झोंक से गुलजार हुई चौपाल

लखनऊ।‘ननद-भाभी के सम्बन्ध कटु होते हुए भी आत्मीयता और प्यार से भरे होते हैं। मड़वे में, पुत्र जन्म के समय तथा विभिन्न संस्कारों में ननद का महत्त्व मिलता है। इससे जुड़े अनेक लोक गीत हैं। भाई के विवाह के बाद बहन को लगता है कि स्नेह का अधिकार बंट गया और वह उसके व्यवहार में नोक-झोंक के रुप में झलकता है।’

ये बातें गुरुवार को लोक विदुषी डा. विद्याविन्दु सिंह ने कहीं। वो लोक संस्कृति शोध संस्थान की मासिक श्रृंखला के अन्तर्गत लोक चैपाल के ऑनलाइन कार्यक्रम में ननद-भौजाई रिश्तों के मनोविज्ञान पर बोल रहीं थीं। उन्होंने कहा कि गृहस्थी में कुछ न कुछ खटर-पटर होती है लेकिन उनके बीच भी सम्बन्ध कितने प्रगाढ़ होते हैं, एक दूसरे के सुख-दुःख की चिन्ता करते हैं, ऐसे सम्बन्धों को फिर से वापस लाने की जरुरत है। इसके लिए अपनी लोक संस्कृति से, उसके रीति-रिवाज़ों से, उसके गीतों और कथाओं से जुड़ना होगा तभी जीवन में रस रहेगा। चौपाल चौधरी के रुप में संगीत विदुषी प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव ने सभी प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। चौपाल प्रभारी मंजू श्रीवास्तव ने बताया कि चर्चा में शिवपूजन शुक्ल, इन्दिरा श्रीवास्तव, रंजना शंकर, डा. अपूर्वा अवस्थी, उमा त्रिगुणायत, उषा पांडिया, रेखा अग्रवाल, लीला श्रीवास्तव, रीता श्रीवास्तव, रुपाली श्रीवास्तव आदि ने भाग लिया।

कार्यक्रम का शुभारम्भ वरिष्ठ लोक गायिका श्रीमती आरती पाण्डेय ने देवी गीत मैं कौन बहाने आऊँ मइया तोरे दरसन को… से की। इसके बाद ननद भौजाई से जुड़े अनेक लोकगीतों से चौपाल गुलजार हुई। संगीत विदुषी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने झरोखे से न झांक मोरी प्यारी ननदिया… आरती पाण्डेय ने छोटकी ननदिया जहर बोले राजा… लीला श्रीवास्तव ने कोई कोठे से उतरी ननदिया मनरजना… शक्ति श्रीवास्तव ने ले लूँगी ले लूँगी ले लूँगी भाभी रानी के कंगना… मधु श्रीवास्तव ने बागों गई थी साथ गई ननदी… रुपाली श्रीवास्तव ने हमका बड़ी हैरानी ननद मोरी काहें मोटानी… अरुणा उपाध्याय ने छोटी ननदिया हठीली कंगने पे मचल गई… इन्द्रा श्रीवास्तव ने ननदिया न आये मोरे अंगना हमारे नन्दलाला हुए… पूनम सिंह नेगी ने लालन भये का नेग जड़ाऊ कंगना भऊजी हम लेबै… अंजलि सिंह ने बदरिया घिर आई ननदी… रेखा अग्रवाल ने हीरे जड़ाऊ मोरा कंगना मैं कंगना नहीं दूंगी… रेखा मिश्रा ने लेबै कजरा के लगौनी… सरिता अग्रवाल ने हमार ननद रानी बड़ी भगतानी… मंजू श्री ने अंगनइया बीचे छेंक ननदो नेग मांगेली… किरन पांडेय ने ननद मोरी आ गई लेबै बधइया… पूनम त्रिवेदी ने हलवइया के लड़का ननदिया को यार… शैलजा पांडेय ने आजकल की ननदी फैशनदार रे तौबा तौबा… तथा साधना भारती ने हमका जनम दुःख देई गई ननदिया… जैसे गीतों से ननद-भौजाई की नोंक-झोंक, आत्मीयता और अन्तरसम्बंधों की भावनात्मक प्रस्तुति दी। लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने सभी प्रतिभागियों का आभार जताया। कार्यक्रम में रेनू दुबे, रश्मि उपाध्याय, हरीतिमा पन्त, अनुराधा दीक्षित, विद्याभूषण सोनी, मीशा शर्मा, मंजू सिंह, संजय शर्मा, मिथिलेश जायसवाल एवं परमानंद पांडेय आदि मौजूद रहे।