कात्यायनी माता
कात्यायनी माता

माता कात्यायनी रोग, शोक, संताप और भय को हरती है, विवाह का भी देती है वरदान

कात्यायनी माता की पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। देवी पार्वती ने यह रूप महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए धारण किया था। माता का यह रूप काफ़ी हिंसक माना गया है, इसलिए माँ कात्यायनी को युदध की देवी भी कहा जाता है।

विवाह नहीं हो रहा या फिर वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानी है तो उसे शक्ति के इस स्वरूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

माता कात्यायनी का स्वरूप

नौ देवियों में कात्यायनी मां दुर्गा का छठा अवतार हैं। देवी का यह स्वरूप करुणामयी है। देवी पुराण के अनुसार कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इन्हें कात्यायनी के नाम से जाना जाता है।

कात्यायनी माता
कात्यायनी माता

मां कात्यायनी का शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। मां 4 भुजाधारी और सिंह पर सवार हैं। उन्होंने एक हाथ में तलवार और दूसरे हस्त में कमल का पुष्प धारण किया हुआ है, जबकि दाहिने दो हाथों से वरद एवं अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं। देवी लाल वस्त्र में सुशोभित हो रही हैं।

कात्यायनी माता: पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी ने कात्यायन ऋषि को जन्म दिया था, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। कई जगह यह भी संदर्भ मिलता है कि वे देवी शक्ति की अवतार हैं और कात्यायन ऋषि ने सबसे पहले उनकी उपासना की, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा।

जब पूरी दुनिया में महिषासुर नामक राक्षस ने अपना ताण्डव मचाया था, तब देवी कात्यायनी ने उसका वध किया और ब्रह्माण्ड को उसके आत्याचार से मुक्त कराया। तलवार आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित देवी और दानव महिषासुर में घोर युद्ध हुआ। उसके बाद जैसे ही देवी उसके क़रीब गईं, उसने भैंसे का रूप धारण कर लिया। इसके बाद देवी ने अपने तलवार से उसका गर्दन धड़ से अलग कर दिया। महिषासुर का वध करने के कारण ही देवी को महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है।

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बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं देवी कात्यायनी

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मां की पूजा विधि : दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश व देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है. देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए

मां का भोग : इस दिन प्रसाद में मधु यानी शहद का प्रयोग करना चाहिए।

मंत्र – चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।

कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।

आशीर्वाद : इनकी उपासना भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं।

मंत्र

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

प्रार्थना मंत्र

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥

स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥

पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।

मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रसन्नवदन…