इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान की हत्या करने की तैयारी कर ली थी। यह खुलासा एक लेख में हुआ है। इजरायल के खोजी पत्रकार योसी मेलमन ने दावा किया कि कुछ ही दिन पहले कोरोना से मरने वाले पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर (एक्यू) खान की मोसाद ने हत्या करने की तैयारी की थी।
परमाणु वैज्ञानिक ने चोरी छिपे बेची थी ख़ुफ़िया जानकारी
हारेत डेली समाचार पत्र में लिखे लेख में बताया गया कि खान ने पाकिस्तान के परमाणु बम की खुफिया जानकारी को चोरी-छिपे बेचा बल्कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने में मदद की थी। खान ने लीबिया के मुअम्मार गद्दाफी की भी परमाणु महत्वाकांक्षा पूरी करने में मदद की। खान ने ऐसा करके परमाणु निरस्त्रीकरण के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क को असंतुलित कर दिया था। इसके चलते इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद एक्यू खान को मारना चाहती थी।
85 साल की उम्र में अब्दुल कादिर खान की मौत हाल ही में कोरोना संक्रमित होने के चलते इस्लामाबाद के एक अस्पताल में हुई है। पाकिस्तान के परमाणु बम निर्माता कहे जाने वाले खान दरअसल, ईरान के परमाणु बम के भी ‘गॉडफादर’ हैं।
इजरायली पत्रकार मेलमन ने अपने लेख में बताया कि मोसाद ने खान के पश्चिम एशिया की बार-बार की यात्राओं का हिसाब रखना शुरू कर दिया था। लेकिन उस समय उनके परमाणु प्रसार के षड्यंत्र को पूरी तरह से समझने में मोसाद कामयाब नहीं हो सका। उन्हें मोसाद के पूर्व प्रमुख शावित ने करीब डेढ़ दशक पहले बताया था कि मोसाद और इजरायली सैन्य खुफिया एजेंसी अमान, एक्यू खान के इरादों को पूरी तरह से नहीं भांपा था।
पत्रकार के अनुसार इजरायल और ईरान के संबंधों के परिप्रेक्ष्य में इतिहास बदल सकता था, अगर मोसाद की टीम खान के इरादों को भांप लेती तो उसे मरवा देती।
इजरायली पत्रकार ने बताया कि पाकिस्तान ने भले ही दुनिया की नजर में पहला परमाणु परीक्षण 1998 में किया हो, लेकिन वह उसके कुछ साल पहले ही परमाणु हथियार बना चुका था। एक्यू खान ने अपने देश की मदद करने के बाद एकाएक रिटायरमेंट ले लिया और असामान्य सा लगने वाला एक निजी कारोबार करने लगे।
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ईरान को अब्दुल कादिर खान से पाकिस्तान के परमाणु हथियार पी-1 और पी-2 की डिजाइन मिल गई। डॉ. मोहसिन फाखरीजादेह के नेतृत्व में ईरानी वैज्ञानिकों ने अपने परमाणु बम आईआर-1 और आईआर-2 बना लिए। बाद में मोसाद ने मोहसिन फाखरीजादेह की हत्या करा दी थी। लेकिन एक्यू खान के असली इरादे भांपने में मोसाद नाकामयाब रहा। उसे उनकी साजिशों की तब तक भनक नहीं लगी, जब तक कि लीबिया के नेता गद्दाफी ने उनकी पोल नहीं खोल दी।
दरअसल, वर्ष 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया था और लीबिया के नेता गद्दाफी को लगा कि अब उन्हीं का नंबर है। इसलिए उन्होंने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई 6 के साथ एक समझौता कर उन्हें एक्यू खान के अवैध परमाणु नेटवर्क की पूरी जानकारी दे दी। उन्होंने यह भी बताया कि खान ने उनके देश के लिए परमाणु साइटें विकसित की हैं। इनमें से कुछ चिकन फार्म की आड़ में संचालित हो रही थीं।