जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है, क्या वहां पर उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है? सोमवार को ये सवाल सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से उठा. केंद्र सरकार ने नया हलफनामा दायर करके कहा है कि इस बारे में उसे राज्य सरकारों और अन्य पक्षकारों से व्यापक विचार विमर्श करने की जरूरत है क्योंकि इसका देश भर में दूरगामी असर होगा. बिना विस्तृत चर्चा के लिया गया फैसला देश के लिए अनपेक्षित जटिलता का कारण बन सकता है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की याचिका के जवाब में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने ये हलफनामा दाखिल किया है. केंद्र का नया रुख कुछ मायनों में उसके 25 मार्च को दाखिल एफिडेविट से अलग है, जिसमें उसने हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की जिम्मेदारी राज्यों पर डालने की कोशिश की थी. तब केंद्र ने कहा था कि राज्यों के पास भी किसी समूह को अल्पसंख्यक घोषित करने का अधिकार है. केंद्र ने ये कहकर याचिका खारिज करने की गुहार लगाई थी कि याचिकाकर्ता की की गई मांग किसी बड़े सार्वजनिक या राष्ट्रीय हित में नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के लगातार जोर डालने और 7500 रुपये का जुर्माना लगाए जाने के बाद केंद्र ने ये हलफनामा दाखिल किया था. हालांकि 28 मार्च को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से और समय मांगा था. अब जाकर केंद्र ने नया हलफनामा पेश किया है.
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अश्विनी उपाध्याय की जिस याचिका पर केंद्र का ये हलफनामा आया है, वो 2020 में दायर की गई थी. लेकिन उससे पहले 2017 में भी उन्होंने हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग करते हुए पहली बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जिसे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भेज दिया गया था, जिसने कहा गया था कि केवल केंद्र सरकार ही ये राहत दे सकता है.