अदालती आदेश की अनदेखी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट सख्त…अब सीधा ‘मुख्य सचिव’ होंगे जिम्मेदार, 5 जनवरी तक की मोहलत

प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकारी विभागों में आदेशों की तामील में होने वाली देरी पर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि प्रशासनिक भ्रम या विभागों के बीच तालमेल की कमी के कारण अदालत के आदेश का पालन नहीं होता है, तो इसके लिए विभाग के सर्वोच्च अधिकारी (मुख्य सचिव) को अवमानना का दोषी माना जाएगा।

न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को चेतावनी देते हुए कहा कि विभिन्न विभागों के बीच काम के बंटवारे को अदालत के आदेश की अवहेलना का बहाना नहीं बनाया जा सकता।

यह मामला विनय कुमार सिंह नामक व्यक्ति की भूमि अधिग्रहण से जुड़ा है, जिसकी जमीन का अधिग्रहण 1977 में किया गया था। याचिकाकर्ता का आरोप है कि 1982 और 1984 में मुआवजे के आदेश तो हुए, लेकिन उसे राशि कभी मिली ही नहीं और जमीन पर कब्जा भी उसी का बना रहा। 2013 के नए कानून के बाद जब प्रशासन ने मुआवजा देने की कोशिश की, तो याचिकाकर्ता ने इसे लेने से मना कर दिया क्योंकि अधिग्रहण की मियाद खत्म हो चुकी थी।

हाई कोर्ट ने पहले ही आदेश दिया था कि याचिकाकर्ता को उसकी जमीन वापस लौटाई जाए। लेकिन प्रशासन ने जमीन लौटाने के बजाय सिंचाई विभाग और शहरी विकास विभाग के बीच फाइलें घुमाना जारी रखा।

कोर्ट ने कहा कि आदेश का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। अगर विभागों में किसी भी तरह का भ्रम है, तो जवाबदेही सर्वोच्च अधिकारी की होगी। अदालत ने माना कि अधिकारियों ने परिणामों की जानकारी होते हुए भी जानबूझकर आदेश की अनदेखी की। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश का पालन करने के लिए एक महीने का समय दिया है। यदि 5 जनवरी 2026 तक आदेश का पालन नहीं होता है, तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होना होगा।

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