मुंबई। 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने करीब 17 साल चले इस बहुचर्चित मामले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया, जिनमें भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय शामिल हैं।
विशेष अदालत ने कहा कि साध्वी प्रज्ञा की मोटरसाइकिल विस्फोट में इस्तेमाल हुई थी, इसके पर्याप्त सबूत नहीं मिले, और आरोपियों पर यूएपीए के प्रावधान लागू नहीं होते। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोप सिद्ध करने के लिए पेश किए गए साक्ष्य पर्याप्त नहीं थे।
अदालत ने अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद 19 अप्रैल 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। एक लाख से अधिक पन्नों के दस्तावेजों की जांच के चलते फैसला आने में देरी हुई।
फैसले के दिन कोर्ट ने सभी आरोपियों को स्वयं उपस्थित रहने का आदेश दिया था और अनुपस्थित रहने पर कार्रवाई की चेतावनी भी दी थी।
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान और नवरात्रि के बीच एक धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। प्रारंभिक जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थी, लेकिन 2011 में मामला एनआईए को सौंप दिया गया।323 गवाहों से पूछताछ की गई, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए।
2016 में एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा सहित कुछ आरोपियों को बरी करने की सिफारिश करते हुए आरोपपत्र दायर किया था।आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आरोप लगाए गए थे।सभी आरोपी वर्तमान में जमानत पर रिहा थे।
17 साल बाद आया यह फैसला कानूनी और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इससे न केवल देश की आतंकवाद-रोधी जांच प्रक्रिया पर प्रश्न खड़े हुए हैं, बल्कि यह फैसला राजनीतिक गलियारों में भी गूंज पैदा कर सकता है।