अभी हाल में यूरोपीय न्यायालय (ईसीजे) ने फैसला दिया है कि किसी देश के लिए अफगान महिलाओं को शरण देने के लिए केवल लिंग और राष्ट्रीयता ही “पर्याप्त” है। ईसीजे ने शुक्रवार को आये फैसले मे कहा कि महिलाओं के प्रति तालिबान द्वारा अपनाए गए भेदभावपूर्ण उपाय “उत्पीड़न के कृत्य हैं” जो शरणार्थी का दर्जा देने के लिए उचित और पर्याप्त कारण है।
तालिबान के 2021 में पुनः सत्ता पर काबिज़ होने के बाद तालिबानी कानून एक बार फिर से अफगानिस्तान में लागू हो गए। तालिबान की कठोर नीतियाँ महिलाओं के अधिकारों को गंभीर रूप से सीमित करती हैं और उन्हें समाज में दूसरे श्रेणी का नागरिक बना देती हैं। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता और ब्यक्तिगत अधिकारों के हनन से तालिबानी शासन में महिलाओं को अत्यधिक कठिन परिस्थियों का सामना करना पड़ रहा है।
अतंराष्ट्रीय समूहों के द्वारा तालिबान पर लगातार इन कड़े नियमों को बदलने का दबाव डाला जा रहा है लेकिन अभी तक उनको कोई खास सफलता नहीं मिली। इन नियमों के चलते वहां की महिलाओं की स्थिति लगातार दयनीय होती जा रही है और यह स्थिति एक बड़ी वैश्विक चिंता का विषय बनी हुई है।
क्या हैं तालिबानी नियम ?
तालिबानी शासित क्षेत्रों में महिलाओं के कड़े और कठोर नियमों की लंबी सूची है, जो महिलाओं के अधिकारों और स्वत्रंता पर एक कुठारा अघात है। तालिबान ने जब 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया और फिर 2021 में पुनः सत्ता में आये, तब से उन्होंने कई कठोर नियम लागू किये हैं। ये नियम मुख्यरूप से धार्मिक और सांस्कृतमान्यताओं पर आधारित हैं, लेकिन उन्हें आलोचकों द्वारा महिला अधिकारों के हनन के रूप में देखा जाता है।
1. शिक्षा पर पाबंदी
तालिबान के तहत महिलाओं और लड़कियों के लिए शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार को गंभीर रूप से बाधित किया गया है। 1996 से 2001 तक, तालिबान ने लड़कियों को स्कूल जाने से पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था। 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद, उन्होंने फिर से कई क्षेत्रों में लड़कियों के लिए स्कूल बंद कर दिए। माध्यमिक और उच्च शिक्षा की पहुंच पर विशेष रूप से रोक लगा दी गई है, जिससे लड़कियों की शिक्षा पर बड़ा आघात हुआ है।
2. काम करने की आजादी पर प्रतिबंध
तालिबान शासन के दौरान, महिलाओं के काम करने के अधिकार पर भी कठोर प्रतिबंध लगाए गए हैं। ज्यादातर सार्वजनिक या निजी क्षेत्रों में महिलाओं को काम करने से रोका जाता है। उन्हें केवल स्वास्थ्य या शिक्षा से जुड़े कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में काम करने की अनुमति है, वह भी तभी जब यह तालिबान की नियमावली के तहत हो। इसका परिणाम यह है कि महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है, और वे समाज में अपने परिवारों पर निर्भर हो जाती हैं।
3. वस्त्रों पर सख्ती
तालिबान ने महिलाओं के पहनावे पर कठोर नियम बनाए हैं। सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को पूरी तरह से बुर्का पहनने का निर्देश दिया गया है, जिससे उनका शरीर और चेहरा पूरी तरह से ढका रहता है। इसका उद्देश्य महिलाओं को पुरुषों की नजरों से बचाना है, लेकिन यह उनके व्यक्तिगत अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। महिलाओं पर यह दबाव होता है कि वे पूरी तरह से धार्मिक और पारंपरिक नियमों का पालन करें।
4. पुरुष संरक्षक की आवश्यकता
तालिबान के कानून के तहत, महिलाओं को एक पुरुष संरक्षक के बिना घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं है। यह संरक्षक उनके पति, पिता, भाई, या अन्य कोई पुरुष रिश्तेदार हो सकता है। इसके बिना, महिलाओं को यात्रा करने, बाजार जाने, या किसी भी सार्वजनिक स्थान पर जाने की आजादी नहीं होती है। यह नियम महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को गंभीर रूप से सीमित करता है।
5. स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में रुकावट
महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में भी तालिबान ने कई सीमाएं लगाई हैं। तालिबान के शासन के तहत, महिलाओं को केवल महिला डॉक्टरों से इलाज कराने की अनुमति है, लेकिन पर्याप्त महिला डॉक्टरों की अनुपस्थिति के कारण, यह नियम उनके स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होता है। इससे महिलाओं को सही समय पर चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त करने में दिक्कतें होती हैं, जो उनके स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में डाल सकती हैं।
6. सार्वजनिक जीवन और राजनीतिक भागीदारी पर प्रतिबंध
तालिबान के शासन में महिलाओं को सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में भाग लेने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें न तो वोट डालने का अधिकार होता है और न ही किसी राजनीतिक पद पर आसीन होने की अनुमति। इससे समाज में महिलाओं की आवाज दब जाती है और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कोई प्रतिनिधित्व नहीं होता।
7. शादी और परिवार पर कठोर नियंत्रण
महिलाओं की शादी और परिवार से संबंधित अधिकार भी तालिबान के नियमों के तहत सीमित होते हैं। महिलाओं को अपनी मर्जी से शादी करने की अनुमति नहीं होती और अक्सर उन्हें बिना उनकी सहमति के ही शादी करने पर मजबूर किया जाता है। तलाक के मामलों में भी महिलाओं की भूमिका सीमित होती है और उन्हें अपने पति से अलग होने का अधिकार नहीं दिया जाता।
8. मीडिया और अभिव्यक्ति पर रोक
महिलाओं के मीडिया में आने, टीवी पर दिखने या रेडियो पर अपनी आवाज को सुनाने पर भी पाबंदी लगाई जाती है। यहां तक कि महिलाएं किसी भी प्रकार की कला, संगीत या खेल में हिस्सा नहीं ले सकतीं। इसका मतलब यह है कि महिलाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह से कुचल दिया गया है।
9. सार्वजनिक स्थानों पर सीमाएं
तालिबान के कठोर नियमों के तहत, महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर आने-जाने में भी मुश्किलें होती हैं। उन्हें अलग-अलग समय पर ही बाहर निकलने की अनुमति होती है, जब पुरुषों की मौजूदगी कम हो। इस प्रकार, तालिबान का शासन महिलाओं की सार्वजनिक उपस्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास करता है।
इन नियमों का पालन इतनी कठिरता से किया जाता है कि वहां रहने वाली महिलाओं का जीवन किसी बहुते बुरे ख्वाब के सच होने जैसा प्रतीत होता है।