सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह कुछ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों द्वारा वर्चुअल सुनवाई के लिए तकनीकी व्यवस्था को खत्म करने से बेहद परेशन है. सुप्रीम कोर्ट ने हाइब्रिड सुनवाई विकल्प को भंग नहीं करने की सिफारिश की है. साथ ही कहा कि जनता के पैसे का इस तरह से दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी.वाई. चंद्रचूड़ ( CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पीठ ने वर्चुअल सुनवाई को मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की.

पीठ ने कहा कि वर्चुअल तकनीक केवल महामारी के समय तक के लिए नहीं थी. सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सभी मुख्य न्यायाधीशों को टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना सीखने की जरूरत है, भले ही वो टेक-फ्रेंडली हों या नहीं. सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने इस बात पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि एक विशाल बजट आवंटित किया गया है, जिसका उपयोग करने की आवश्यकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस तकनीक को समझते हों या नहीं, वे कर्तव्य से बंधे हुए हैं.
सीजेआई ने आगे कहा कि समस्या इसलिए शुरू हुई. क्योंकि कुछ मुख्य न्यायाधीशों को टेक्नोलॉजी पसंद थी. जबकि कुछ को नहीं पसंद थी. हालांकि उन्होंने कहा कि हर किसी को टेक्नोलॉजी से परिचित होना चाहिए. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने बताया कि केंद्र सरकार ने ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के तीसरे चरण के लिए 7 हजार करोड़ रुपये मंजूर किये थे. जिसका इस्तेमाल वकीलों को तकनीक उपलब्ध कराने के लिए किया जा सकता है. अदालत ने यह कहते हुए सुनवाई पूरी कर दी कि वह आदेश तैयार करेगी और पारित करेगी.
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प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह स्थायी रूप से है और अवसंरचना को इस तरह से खत्म नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘हम आदेश पारित करेंगे. हम सुनिश्चित करेंगे कि प्रौद्यागिकी की वजह से कोई पीछे नहीं छूटे.’
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