जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सम्मेलन के आखिरी दिन रविवार को मथुरा-कुतुब मीनार जैसे मुद्दों पर चर्चा करके कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। इस प्रस्ताव में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह के मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है। जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हम अल्पसंख्यक नहीं, मुल्क के दूसरे बहुसंख्यक हैं।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिला के देवबंद में उस्मान नगर स्थित ईदगाह मैदान पर 28 मई से शुरू हुई प्रबंधन समिति सभा के आखिरी दिन मदनी ने मुस्लिमों से देश को तरक्की देने और हर तरह की अशांति से इसे सुरक्षित रखने का आह्वान किया। उन्होंने यहां तक कहा कि जो हमें पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं, वो खुद वहां चले जाएं, क्योंकि यह मुल्क हमारा है और इसे बचाने की जिम्मेदारी हमारी है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने पारित प्रस्ताव में कहा है कि ज्ञानवापी, मथुरा ईदगाह, कुतुब मीनार जैसे नए विवाद देश की छवि खराब करने और समाज को नकारात्मक तरह की सोच की ओर धकेलने का एक कुत्सित षडयंत्र है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि इतिहास के पन्नों को कुरेदना और उन्हें वर्तमान समय में विवाद में बदलना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
इसके साथ ही प्रस्ताव में कहा गया कि बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के ईदगाह मामले में अदालती आदेशों से उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) कानून-1991 की अवहेलना हुई है। इससे विभाजनकारी राजनीति को बल मिल रहा है। पहले संसद और फिर बाबरी मस्जिद के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के रिमार्क से यह तय हो चुका है कि उपासना स्थल एक्ट 1991 के तहत आजादी के समय अर्थात 15 अगस्त 1947 को इबादतगाहों की स्थिति यथावत रहेगी।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के अपने प्रयासों के लिए सरकार को दोषी ठहराया। वक्ताओं ने कहा कि सरकार की इन मंशाओं का मुसलमान धैर्य और दृढ़ता के साथ जवाब देंगे।प्रस्ताव में कॉमन सिविल कोड पर कहा गया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव या उसमें हस्तक्षेप संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसके बावजूद केंद्र समेत कई राज्यों की सरकारों द्वारा समान नागरिक संहिता कानून लाकर पर्सनल लॉ को खत्म करने के संकेत दिए जा रहे हैं। जमीयत संविधान इसका विरोध करती है और करती रहेगी।
Sarkari Manthan Hindi News Portal & Magazine