किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग एवं यूपी चैप्टर इण्डियन चेस्ट सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को अन्तरराष्ट्रीय रेस्पिरेटरी कांफ्रेंस (वर्चुवल) आयोजित की गई। ज्ञात रहे कि केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग की स्थापना सन् 1946 में हुई थी। वर्ष 2021 में इस विभाग की स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। विभागाध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने बताया कि विभाग की स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में विभाग 75 समारोहों की श्रृंखला मना रहा है। यह कांफ्रेंस भी इसी श्रृंखला की सफल कड़ी है।
कांफ्रेंस के आयोजक अध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने कांफ्रेंस के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी और सभी का स्वागत किया। उन्होनें कहा कि दुनिया में होने वाली मृत्यु में टी.बी., वायु प्रदूषण जनित रोग, लंग कैंसर, सी.ओ.पी.डी., निमोनिया, फेफड़ो की प्रमुख बीमारियां शामिल हैं। दुनिया के साथ साथ ये बीमारियां भारत में भी प्रमुखता से पाई जाती हैं। इनके अलावा पिछले दो वर्षों से कोविड-19 भी सभी के लिए चुनौती बना हुआ है। फेफड़ों की महत्ता बताते हुए डा. सूर्यकान्त ने कहा कि पहली सांस से हमारा जन्म होता है और आखिरी सांस से हमारी मृत्यु होती है, अतः “जीवन है अनमोल, समझिये फेफड़ों का मोल”। ठण्डक का समय आ चुका है सांस रोगियों की तकलीफ ठण्ड़ में अधिक बढ़ जाती है, इसलिए प्राणायाम एवं भाप लेते रहें साथ ही साथ धूल, धुएं, वायु प्रदूषण व कोविड से बचने के लिए मास्क का भी उपयोग करें।
कार्यक्रम का शुभारंभ केजीएमयू के कुलपति लेफ्टिनेंट ज. (डा.) बिपिन पुरी, जो कांफ्रेंस के संरक्षक भी थे के द्वारा किया गया। डा. पुरी ने आयोजकों को बधाई दी एवं फेफड़ों के चिकित्सकों से टी.बी. जैसी गम्भीर बीमारी में अपना सक्रिय योगदान देने के लिए आह्वान किया।
कांफ्रेंस में देश के ही नहीं वरन विदेश से भी प्रख्यात चिकित्सक सम्मिलित हुए। पद्म श्री डा. डी बेहरा (चण्डीगढ़) ने लंग कैंसर के इलाज के लिए नई तकनीकियों, विभिन्न चिकित्सकीय उपकरणों एवं भारत में लंग कैंसर की वर्तमान स्थिति के बारे में विस्तार से चर्चा की। यूनिर्वसिटी ऑफ इन्डोनेशिया जकार्ता, इन्डोनेशिया के डा. अगस डी सुसान्तो, पल्मोनोलाजिस्ट ने ’वायु प्रदूषण एवं फेफड़ों की तन्दुरूस्ती’ पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण पर्यावरण की सबसे बड़ी समस्या है। वायु प्रदूषण से गले में उत्तेजना, श्लैष्मिक सूजन, आक्सीडेटिव स्ट्रेस, एलर्जी आदि विभिन्न प्रकार की परेशानियां होती है। उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि पेकनवारू, इन्डोनेशिया में जंगल की आग से वहां के आस पास के लोगों के फेफड़े की क्षमता कम हो गयी थी, जिससे फेफड़ों की बीमारी में वृद्धि हुयी जिसके कारण मृत्यु दर भी ज्यादा हुयी। डा. अनूप बंसल, इन्टेसिव केयर स्पेसियलिस्ट, आस्ट्रेलिया ने रेस्पिरेटरी आइ.सी.यू. के गम्भीर मरीजों की देखभाल पर चर्चा की। डा. अशोक कुमार सिंह (कानपुर) ने एक नई मशीन “हाई फ्लो नेजल कैनुल” के बारे में बताया। इस मशीन के द्वारा श्वास के रोगियों एवं कोविड काल में कोरोना के मरीजों में आक्सीजन की कमी को दूर किया जा सकता है जिससे मरीजों को आई.सी.यू. एवं गम्भीर स्थिति में जाने से बचाया जा सकता है। डा. मनोज गोयल (गुरूग्राम), डा. किरन विष्णु (केरल), डा. रिचा गुप्ता (वेल्लोर), डा. राखी सोंधी (देहरादून), डा. सुष्मिता राय चौधरी (कोलकाता), डा. अंकित भाटिया (नई दिल्ली), डा. जीबी सिंह (आगरा) ने चेस्ट से जुड़ी विभिन्न बीमारियों पर प्रकाश डाला।
इस कांफ्रेंस में देश विदेश से लगभग 250 लोगों ने प्रतिभाग किया। इस आयोजन में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के चिकित्सक डा. एस.के. वर्मा, डा. आर.ए.एस. कुशवाहा, डा. सन्तोष कुमार, डा. राजीव गर्ग, डा. अजय कुमार वर्मा, डा. आनन्द श्रीवास्तव, डा. दर्शन कुमार बजाज, डा. अंकित कुमार, रेजिडेन्ट डाक्टर्स, डा. सपना दीक्षित, डा. नन्दिनी दिक्षित, डा. अनिकेत रस्तोगी, पीएचडी स्कालर अनुज कुमार पाण्डेय, टेक्निकल स्टाफ एवं अन्य कर्मचारी एवं सदस्यगण उपस्थित रहे । इस सम्मेलन का समापन उपकुलपति के.जी.एम.यू. डा. विनीत शर्मा द्वारा समापन संदेश एवं डा. ज्योति बाजपेई (असिस्टेन्ट प्रोफेसर, रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग) के धन्यवाद ज्ञापन के साथ किया गया।