लखनऊ। कोरोना वायरस का संकट इस दफा बकरीद पर चौतरफा परेशानियां लेकर आया है जहां एक तरफ संक्रमण के खौफ के कारण कुर्बानी को लेकर पसोपेश की स्थिति बनी हुई है, वहीं लॉकडाउन के चलते जानवर मंडियों पर छाये सूनेपन से करोड़ों लोगों की मुसीबतें बढ़ गयी हैं। इस बीच सरकार से बकरीद को लेकर दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गयी है।
मुस्लिम धर्मगुरुओं और मीट कारोबारियों का कहना है कि बकरीद के त्यौहार में 12 दिन बाकी हैं लेकिन सरकार ने कोविड-19 संकट के मद्देनजर अभी तक जानवरों को लाने-ले जाने तथा उनकी कुर्बानी के लिये दिशानिर्देश नहीं जारी किये हैं। इससे मुस्लिम समुदाय पसोपेश में है कि वह इस मुश्किल वक्त में कुर्बानी का फर्ज कैसे निभाये।
आल इण्डिया जमीयत—उल—कुरैश के अध्यक्ष सिराजउद्दीन कुरैशी ने ‘भाषा’ से बातचीत में कहा, ”कहना बहुत मुश्किल है कि सरकार के जहन में क्या है। कुर्बानी मुसलमानों की आस्था से जुड़ा मामला है। सरकार से अपील है कि वह इस पर बेहद संजीदगी से सोच—विचार कर कोई हल निकाले। यह पूरे हिन्दुस्तान की समस्या है। हमारे लोग अलग—अलग राज्यों की सरकारों से इस बारे में बातचीत कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से कोई दिशानिर्देश जारी न होने के कारण वे मदरसे भी अपने यहां सामूहिक तौर पर कुर्बानी कराने से पीछे हट रहे हैं, जो अभी तक इस फर्ज को अंजाम देते रहे हैं।
कुरैशी ने कहा कि बकरीद पर बकरे की ही नहीं बल्कि भैंस और पड़वे जैसे बड़े जानवरों की भी कुर्बानी की जाती है। सरकार यह सुनिश्चित करे कि कुर्बानी के लिये इन जानवरों को लाने—ले जाने वालों को पुलिस तंग न करे। इस बात का भी ख्याल रखा जाए कि पूर्व में जानवरों के परिवहन के दौरान मॉब लिंचिंग की कई घटनाएं हो चुकी हैं।
लखनऊ के शहर काजी मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बकरीद पर दिशानिर्देश जारी करने की गुजारिश लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हाल में मुलाकात की थी। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने बकरीद के सिलसिले में दिशानिर्देश जारी करने को कहा था। उम्मीद है कि इसे जल्द ही जारी किया जाएगा।
मीट कारोबारी सिराज कुरैशी ने कहा कि कोरोना काल में बकरीद के पर्व पर कुर्बानी के लिए दिशा निर्देश जारी नहीं होने से लोगों को परेशानी होगी, क्योंकि इससे हमेशा यह डर बना रहेगा कि कुर्बानी करने पर कहीं प्रशासन उनसे सवाल जवाब न करे।
हालांकि बकरीद के मद्देनजर खड़ी यह कोई अकेली समस्या नहीं है। सबसे बुरे हालात जानवर कारोबारियों के हैं। लॉकडाउन के कारण कारोबार बंद होने से पहले ही लोग खस्ताहाल हैं। ऐसे में इस बार बकरीद में कुर्बानी का खर्च उठाना भी बेहद मुश्किल है। इससे मवेशी कारोबारी तो परेशान हैं ही, साल भर बकरे पालकर बकरीद के वक्त उन्हें बेच मुनाफा कमाने की उम्मीद रखने वाले करोड़ों किसान भी बेहद मुश्किल में हैं।
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात समेत कई राज्यों में राजस्थान के बकरों की आपूर्ति की जाती है। मगर कोविड—19 संकट के कारण खाली जेबों का सूनापन बकरा मंडियों पर भी छाया है।
राजस्थान के सोजत निवासी राहत अली बकरों के बड़े कारोबारी हैं। मुम्बई, अहमदाबाद और जयपुर जैसी बड़ी मंडियों में जानवरों की आपूर्ति करने वाले राहत ने बताया कि यह कारोबार एक श्रृंखला के रूप में होता है। इसमें पशुपालक किसान, छोटे कारोबारी और बड़े कारोबारी शामिल होते हैं। छोटे कारोबारी गांवों में घूम—घूमकर किसानों से बकरे खरीदते और उन्हें देते हैं जिन्हें वे महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भेजते हैं।
करीब 20 साल से इस कारोबार से जुड़े राहत ने बताया कि इस बार मंडियां सूनी हैं जिससे इस श्रृंखला से जुड़े करोड़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं। गांवों में दुधारू जानवरों की खरीद भी बकरों और दूध न देने वाले कुर्बानी लायक जानवरों की बिक्री पर निर्भर करती है।
देश में कृषि के बाद पशुपालन ही ग्रामीण इलाकों का सबसे बड़ा कारोबार है। बकरीद इस पेशे से जुड़े किसानों के लिये साल में आने वाली एकमात्र सहालग होती है, जिसे कोरोना संकट ने निगल लिया है।
राहत ने बताया कि मंडियों में मांग न होने की वजह से उन्होंने इस साल माल नहीं खरीदा। जिन लोगों के पास माल है, उनकी हालत बहुत खराब हो चुकी है। इस साल करोड़ों रुपये का नुकसान होगा।
उत्तर प्रदेश के हापुड़, बुलंदशहर, गाजियाबाद और मुरादाबाद समेत कई पश्चिमी जिलों में बकरों की सप्लाई करने वाले साजिद ने बताया कि लॉकडाउन ने लोगों की जेबें निचोड़ डाली हैं। लोगों के पास धन नहीं है। इस वजह से जानवर नहीं बिक रहे हैं। वह कहते हैं कि बकरीद में अब बमुश्किल 10—12 दिन ही बचे हैं मगर कुर्बानी के लिये जानवरों की खरीद—फरोख्त लगभग शून्य ही