PoK में मुसलमान क्यों कर रहे आदि गुरु शंकराचार्य की विरासत का संरक्षण? हिंदू-मुस्लिम आस्था की पूरी कहानी

धर्म, राजनीति और देश की सीमाएं एक तरफ और हिंदू-मुस्लिम आस्था एक तरफ. यह कहानी है, भारत-पाक सीमा से परे हिंदू-मुस्लिम आस्था की. यह कहानी है आदि गुरु शंकराचार्य की विरासत की, जिसके संरक्षण का जिम्मा उठाया है मुस्लिम समुदाय ने. सालों से मुस्लिम समुदाय ही उसकी देखभाल करता आ रहा है. दरअसल, कश्मीर में जिस स्थान पर आदि गुरु शंकराचार्य ने अपनी दिग्विजय यात्रा का समापन किया था, वहां तब शारदा पीठ की स्थापना की गई थी. वो जगह पीओके यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पड़ती है, जहां आज भी उस शारदा पीठ के अवशेष मौजूद हैं.

कहा जाता है कि शारदा पीठ एक मंदिर के साथ विश्वविद्यालय के रूप में भी था. अभी उसका एक भव्य मेहराब और एक प्रवेश द्वार दिखता है. आदि गुरु शंकराचार्य के विरासत की देखभाल पीओके का मुस्लिम समुदाय कर रहा है. शारदा पीठ, भारत-पाक सीमा पर स्थित कुपवाड़ा जिले के केरन गांव से करीब 20 किलोमीटर दूर पड़ता है. शारदा गांव पाक के नियंत्रण वाले कश्मीर का हिस्सा है. टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, वहां के स्थानीय मुस्लिम युवकों ने शारदा पीठ के संरक्षण और जीर्णोद्धार की पहल की है. युवाओं का मानना है कि इन अवशेषों की ठीक से देखभाल होनी चाहिए.

हिंदुओं की देवी, मुसलमानों की माई

शारदा पीठ के प्रति हिंदुओं की भी आस्था है और मुस्लिमों की भी. वहां के स्थानीय शिक्षक ख्वाजा अब्दुल गनी ने इस पर एक किताब भी लिखी है. उनके मुताबिक, हिंदुओं के लिए यह शारदा देवी है, जबकि मुसलमानों के लिए शारदा माई. मुस्लिम भी मंदिर को पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ मानते हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, शारदा पीठ 7वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था. यह तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ अध्ययन केंद्र भी था. आदि गुरु शंकराचार्य ने बौद्ध और जैन भिक्षुओं के साथ चली गहन बौद्धिक और तार्किक बहस के आधार पर श्रेष्ठ साबित होने के बाद यहां सर्वमान्य पीठ की स्थापना की थी.

कई ग्रंथों में शारदा पीठ की चर्चा

जेएनयू की प्राे सोनालिका कौल के मुताबिक, 7वीं सदी के ग्रंथ निलैनाता पुराण में इसका जिक्र मिलता है. 12वीं सदी के कश्मीर के पहले इतिहास ‘कल्हण की राजतरंगिनी’ में भी इसकी चर्चा है. 8वीं सदी तक यह भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल था. प्रो कौल ने काफी अध्ययन के बाद ‘द मेकिंग ऑफ अर्ली कश्मीर: लैंडस्केप एंड आइडेंटिटी इन राजतरंगिणी’ किताब लिखी है.

उनका कहना है कि 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य की कश्मीर यात्रा और सर्वज्ञ पीठ की स्थापना की पुष्टि होती है. 13वीं शताब्दी के ग्रंथ मध्विया शंकरा दिग्विजयम में भी इस पीठ का जिक्र मिलता है.

केवल हिंदू तीर्थस्थल नहीं, कई धर्मों का संगम

पीओके के मुजफ्फराबाद यूनिवर्सिटी की रुखसाना खान के मुताबिक, यह पीठ एक हिंदू मंदिर से कहीं ज्यादा है. वो यूनिवर्सिटी में शारदा सेंटर ऑफ लर्निंग, ऑर्कियोलॉजी एंक कल्चरल हैरिटेज डिपार्टमेंट की एचओडी हैं. उनका कहना है कि यह कई सभ्यताओं का एक चौराहा था, जहां विभिन्न धर्मों के लोग, तीर्थयात्री और विद्वान आकर्षित हुए.

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प्रो खान ने कहा कि किशनगंगा घाटी में शिलालेखों के रूप में इसने अपनी छाप छोड़ी. शारदा मंदिर इस सभ्यता का प्रमाण है, जो 7वीं सदी में लाली तादित्य द्वारा निर्मित मार्तंड मंदिर की तरह है, जो भारत में अनंतनाग के पास स्थित है. फिलहाल मुस्लिम युवकों की ओर से शारदा पीठ के संरक्षण की पहल की चहुंओर सराहना हो रही है.