लखनऊ, 23 मार्च – 2022 । देश को क्षय रोग (टीबी) मुक्त बनाने के लिए हर स्तर पर गंभीरता के साथ काम चल रहा है । पूर्व में पोलियो व चेचक जैसी गंभीर बीमारियों को वैक्सीन के बल पर ही ख़त्म किया जा सका है, कोविड पर भी नियन्त्रण टीके के बल पर ही पाया जा सका है । इसी को देखते हुए अब टीबी के खात्मे के लिए भी कारगर वैक्सीन लाने पर तेजी के साथ काम चल रहा है । इसमें दो वैक्सीन पर जहाँ अपने देश में काम चल रहा है, वहीँ 100 से अधिक वैक्सीन पर दूसरे देश काम कर रहे हैं ।
यूपी स्टेट टीबी टास्क फ़ोर्स (क्षय नियन्त्रण) के चेयरमैन व किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि पूर्व में भी हमने टीके के बल पर ही कई संक्रामक बीमारियों पर विजय पायी है। अब टीबी को भी जड़ से ख़त्म करने के लिए वैक्सीन पर काम चल रहा है । टीबी का टीका बैसिलस कैलमेट गुएरिन (बीसीजी) करीब 100 साल पुराना टीका है जो कि बच्चों को गंभीर टीबी से बचाता है, जिसमें मिलियरी और टीबी मेनेंजाइटिस के गंभीर रूप शामिल हैं । डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि विश्व में टीबी के 100 से अधिक टीके क्लीनिकल ट्रायल के विभिन्न चरणों में लंबित हैं । हमारे देश में भी आईसीएमआर संस्था द्वारा वर्ष 2019 में दो टीकों को प्रयोग के लिए चयनित किया गया था। इनमें वीपीएम 1002- सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इण्डिया और एमआईपी – कैडिला आईसीएमआर शामिल हैं। कोविड के कारण इन दोनों टीकों के विकास पर काम रुका था, जिसमें एक बार फिर से तेजी लाते हुए काम शुरू किया गया है । कोविड-19 के खिलाफ रिकार्ड समय में टीके को विकसित किया गया और अब इस दिशा में भी उसी रफ़्तार से काम किया गया तो वह दिन दूर नहीं कि हम टीबी के खिलाफ भी कारगर व सुरक्षित टीका विकसित करने में सफल हो सकेंगे।
डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि वीपीएम 1002 एक रिकम्ब्रनेंट बीसीजी वैक्सीन है, जिसका उपयोग टीबी के रोकथाम के साथ एक्सपोजर प्रोफाइलेक्सिस के लिए भी कर सकते हैं । यह टीका एक जरूरी विकल्प है क्योंकि बीसीजी को किसी अन्य टीके के साथ बदलने के बजाय इसी टीके को परिवर्तित करते हुए इसमें सुधार करना ज्यादा उपयोगी होगा । रिकम्ब्रनेंट बीसीजी की विशेषता की वजह से हमारे देश में इसी श्रेणी में एक और वैक्सीन एमटीबीवीएसी पर शोध किया जा रहा है । इसी महीने भारत बायोटेक ने दक्षिण पूर्व एशिया और उपसहारा अफ्रीका के 70 से अधिक देशों में एक नया टीबी का टीका एमटीबीवीएसी के विकास, निर्माण और मार्केटिंग के लिए स्पेनिश बायोफार्मास्युटिकल कम्पनी के साथ साझेदारी की है । यह टीका टीबी के रोकथाम में विश्वसनीय व कारगर साबित हो सकता है । डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि एमआईपी – कैडिला एक दूसरे प्रकार का टीका है, जिसको निष्क्रिय एमआईपी की कोशिकाओं को गर्म करके विकसित किया गया है। एमआईपी एम लेप्रे और एमटीबी दोनों के साथ एंटीजन को साझा करता है और बीसीजी रेस्पांडर और नान रेस्पांडर स्ट्रेन दोनों में टीबी के खिलाफ पुख्ता सुरक्षा प्रदान करता है ।
लक्षण नजर आयें तो जाँच जरूर कराएँ :
डॉ. सूर्यकान्त ने कहा- क्षय रोग के प्रति जनजागरूकता और जनसहभागिता बढ़ाने के उद्देश्य से ही हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस मनाया जाता है । टीबी के लक्षणों और उपचार की सही-सही जानकारी जनमानस को होना बहुत जरूरी है । दो सप्ताह या अधिक समय से खांसी एवं बुखार आना, वजन में कमी होना, भूख कम लगना, बलगम से खून आना, सीने में दर्द एवं छाती के एक्स-रे में असामान्यता क्षय रोग के प्रमुख लक्षण हैं । क्षय रोग पूरी तरह से साध्य रोग है, जिसका पूरा कोर्स करने से रोगी पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है । क्षय रोग परीक्षण एवं उपचार की सेवाएं प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क उपलब्ध हैं । इसलिए यह लक्षण नजर आयें तो टीबी की जांच जरूर कराएँ ।
टीबी और कोरोना दोनों से बचाएगा मास्क :
खांसने और छींकने से संपर्क में आने से कोरोना व टीबी के फैलने का खतरा है, इसलिए हम अगर मास्क लगाते हैं तो वह कोरोना से हमारी रक्षा करने के साथ ही टीबी से भी बचाएगा । इस बारे में जरूरी आंकड़े भी जुटाए जा रहे हैं तभी पता चल सकेगा कि इसबीच इसमें कितनी कमी आई है ।
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क्षमतावर्धन करेगा केजीएमयू का सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस :
आई डिफीट टीबी प्रोजेक्ट के तहत केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग को उत्तर प्रदेश का पहला सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस बनाया गया है । देश में इसके लिए कुल 15 सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस बनाये गए हैं । केजीएमयू इसके तहत प्रदेश के सभी मेडिकल कालेज के साथ ही जिला अस्पतालों व सीएचसी-पीएचसी के कर्मचारियों के क्षमतावर्धन का कार्य करेगा ताकि टीबी की जांच व उपचार को गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सके। एमडीआर व एक्सडीआर टीबी के मरीजों को भी बेहतर उपचार मुहैया कराने में भी सहयोग किया जायेगा ।