कोविशील्ड को लेकर डरने की जरुरत नहीं : पूर्व आईसीएमआर वैज्ञानिक


भारत में कोविशील्ड को लेकर फैले डर के बीच आईसीएमआर के पूर्व वैज्ञानिक ने राहत देने वाली जानकारी दी है। उनका बोलना है कि कोविशील्ड को लेकर किसी भी तरह से डरने की जरूरत नहीं है।

इससे साइडइफेक्ट दुर्लभ से दुर्लभ मामलों में ही होता है। उन्होंने इसका डेटा ही समझाते हुए कहा कि वैक्सीन लेने वाले 10 लाख लोगों में से कोई 7 या 8 लोगों के साथ हार्ट अटैक या ब्लड क्लॉटिंग यानी खून के थक्के जमने का रिस्क हो सकता है।

इस साइडइफेक्ट को थ्रोम्बोसिस थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम कहा जा रहा है। आईसीएमआर के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. रमन गंगाखेडकर ने कहा कि वैक्सीन से किसी भी तरह का रिस्क नहीं है।

यह अपवाद और दुर्लभ से दुर्लभ केसों में ही होता है। उन्होंने एक बातचीत में कहा, ‘जब आप पहली डोज लेते हैं, सबसे ज्यादा रिस्क होता है।

दूसरी डोज लेने पर यह कम हो जाता है और तीसरी में तो एकदम होता है। यदि साइडइफेक्ट होना ही होता है तो शुरुआती दो से तीन महीनों में असर दिख जाता है।

उनका बोलना था कि वैक्सीन लेने के सालों बाद इसे लेकर डरने की जरूरत नहीं है। दरअसल यह पूरा मामला ब्रिटेन की एक अदालत में चले केस से शुरू हुआ है, जहां कुछ मृतकों के परिजनों ने दावा किया था कि वैक्सीन लेने के बाद ही उनकी मौत हुई।

यह केस चला तो अदालत में वैक्सीन तैयार करने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना कि दुर्लभ केसों में ब्लड क्लॉटिंग की दिक्कत हो सकती है।

भारत में इस वैक्सीन का उत्पादन सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने किया है, जिसका नाम कोविशील्ड रखा गया है। भारत में 90 फीसदी लोगों को कोविशील्ड का ही टीका लगा है।

ब्रिटेन में चले केस की खबरें जब मीडिया में आईं तो भारत में भी कुछ लोगों में डर फैला। इसी को लेकर जब आईसीएमआर के पूर्व वैज्ञानिक से पूछा गया तो उन्होंने इसे खारिज किया। उनका बोलना था कि किसी भी वैक्सीन के कुछ साइडइफेक्ट्स हो सकते हैं, समय के साथ ये खत्म होते जाते हैं।

डॉ. रमन गंगाखेडकर का बोलना है कि किसी भी वैक्सीन के साथ ऐसा होता है। उन्होंने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि 10 लाख में से 7 या 8 लोगों को ही साइडइफेक्ट का खतरा होता है।बता दें कि ब्रिटिश अखबार ने लिखा था कि एस्ट्राजेनेका ने लंदन के हाई कोर्ट में बताया है कि उसकी दवा से दुर्लभतम केसों में साइडइफेक्ट हो सकता है।