नवरात्रि का पवन पर्व पूरे देश में मनाया जा रहा है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि में लोग सप्तमी और अष्टमी तिथि को लेकर असमंजस में है। आज नवरात्र के सातवें दिन नौ दुर्गा के सातवें स्वरुप मां कालरात्रि कि पूजा आराधना की जाती है। माना जाता है, कि मां कालरात्रि कि पूजा तभी सम्भव मानी जाती है। जब तक कि माता कि व्रत कथा को पढ़ा या सुना न जाये। आइये जानते है नौ दुर्गा के सातवें स्वरुप का वर्णन और माता से जुडी पौराणिक कथा।
ऐसा है मां कालरात्रि का स्वरूप
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।

अपने भक्तों को देती हैं निडरता का संदेश
इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।
मां अपने भक्तों का करती हैं भला
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
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इस तरह किया था रक्तबीज का वध
रक्तबीज एक ऐसा दानव था जिसे यह वरदान था की जब जब उसके लहू की बूंद इस धरती पर गिरेगी तब तब हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेगा जो बल, शरीर और रूप से मुख्य रक्तबीज के समान ही होगा। ऐसे में मां कालरात्रि ने रक्तबीज की गर्दन काटकर उसे खप्पर में रख लिया ताकि रक्त की बूंद नीचे ना गिरे और उसका सारा खून पी गयी, बिना एक बूंद नीचे गिरे। जो भी दानव रक्त से उनकी जिह्वा पर उत्पन्न होते गए उनको खाती गई। इस तरह मां काली ने रक्तबीज का अंत किया।
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