सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) वर्ग को नौकरी और प्रवेश में मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण के मामले में सुनवाई शुरू की है। कोर्ट की संविधान पीठ के सामने इस पर बहस हो रही है कि क्या EWS आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार से ये सुनवाई शुरू की।
बहस इस बात पर हो रही है क्या 103वां संशोधन अधिनियम, संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है या नहीं? इसी संशोधन के जरिए सरकारी नौकरियों और प्रवेश में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई। संविधान का 103वां संशोधन क्या है? आरक्षण का विरोध करने वालों की क्या दलील है? याचिका किसने लगाई है? कोर्ट में हुई पहले दिन की कार्यवाही में क्या-क्या हुआ? EWS आरक्षण से अब तक कितने लोगों को फायदा हुआ है? आइये जानते हैं…
संविधान का 103वां संशोधन क्या है?
जनवरी 2019 में देश में EWS आरक्षण की अधिसूचना जारी हुई। संविधान के 103वें संशोधन के आधार पर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने ये अधिसूचना जारी की। इसके जरिए नौकरी और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण दिया गया। इसका लाभ उन लोगों को मिलता है जिन्हें SC, ST या OBC आरक्षण का लाभ नहीं मिलता और उनके परिवार की सकल वार्षिक आय आठ लाख से कम है। हालांकि, इसके साथ ही आरक्षण को लेकर कुछ शर्ते भी थीं।
संविधान पीठ में कौन से जज शामिल हैं और किस आधार पर यह सुनवाई कर रहे हैं?
पांच जजों की संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस बी पारदीवाला और जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल हैं। इस संविधान पीठ ने बीते हफ्ते ही तय किया था कि संविधान संशोधन की वैधता है या नहीं इसकी जांच करने के लिए तीन प्रमुख आधार पर तय करेंगे।
क्या आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की अनुमति देने के लिए किया गया यह संविधान संशोधन संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है?
क्या ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को EWS कोटे से अलग रखके संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन किया गया है?
इस कानून से राज्य सरकारों को निजी संस्थानों में दाखिले के लिए जो EWS कोटा तय करने का अधिकार दिया गया है, क्या वह संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ है या नहीं?
ये सुनवाई हो क्यों रही है?
ईडब्ल्यूएस कोटा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हुई हैं। इन पर सुनवाई के लिए पांच जजों की संवैधानिक पीठ गठित की गई। मंगलवार से इस पीठ ने इस पर सुनवाई शुरू की। ईडब्ल्यूएस कोटा का विरोध करने वाला सबसे प्रमुख नाम तमिलनाडु की सत्ता में बैठी पार्टी डीएमके का है।
डीएमके का कहना है कि नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता। डीएमके का तर्क है कि लोगों के सामाजिक पिछड़ेपन को कम करने के लिए आरक्षण दिया जाता है। ये आरक्षण उन लोगों के लिए होता है जो सामजिक तौर पर प्रताड़ित रहे हैं। आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण एक तरह का मजाक है।
कोर्ट की सुनवाई में अब तक क्या-क्या हुआ?
पहले दिन की सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र का EWS वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देना संविधान के मूल ढांचे का कई तरह से उल्लंघन करता है। यह संशोधन आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा का भी उल्लंघन करता है।
जाने-माने शिक्षाविद प्रोफेसर डॉक्टर मोहन गोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने कहा, ‘संविधान का 103वां संशोधन संविधान पर हमला है। इस कोटा ने वंचित समूहों के प्रतिनिधित्व के साधन के रूप में आरक्षण की अवधारणा को उलट दिया है। इस संशोधन ने इसे वित्तीय उत्थान की एक योजना में परिवर्तित कर दिया है।’
उन्होंने कहा, ‘ईडब्ल्यूएस कोटे का लाभ केवल ‘अगड़े वर्गो’ तक सीमित है, इसका परिणाम समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है और यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन है। यह कोटा आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का एक प्रयास है।’
एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने कोर्ट से कहा, ‘ऐतिहासिक रूप से जिन वर्गों के साथ अन्याय हुआ उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था लाई गई। इसे केवल आर्थिक आधार पर नहीं दिया जा सकता है।’ एडवोकेट संजय पारीख ने कहा कि पिछड़े, दलित और आदिवासी समुदाय के गरीबों को EWS कोटे से अलग रखना संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
इसके साथ ही आर्थिक आधार का मुद्दा भी कोर्ट में उठाया गया। डॉक्टर गोपाल ने कहा,’EWS कोटे का लाभ पाने की सीमा आठ लाख रुपये वार्षिक कमाई तक की है। यानी, इसका लाभ उन परिवारों को भी मिलेगा जिनकी मासिक कमाई करीब 66 हजार रुपये महीना है। देश के 96 फीसदी परिवारों की मासिक कमाई 25 हजार या उससे कम है। इससे प्रतीत होता है कि इससे लाभ पाने वालों का दायरा बहुत बड़ा है।
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इस पूरे मामले में केंद्र सरकार का क्या रुख है?
सरकार की ओर से कोर्ट में अभी दलीलें दी जानी बाकी हैं। हालांकि, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने अपना एफिडेविट दिया है। इसमें मंत्रालय ने कहा है कि सरकार कि जिम्मेदारी है कि वह संविधान के अनुच्छेद 46 के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा करे।