गोंडा। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से आई एक दर्दनाक और झकझोर देने वाली खबर ने पूरे प्रशासनिक सिस्टम और सरकारी कर्मचारियों पर पड़ने वाले अत्यधिक दबाव की सच्चाई को उजागर कर दिया है। (Gonda BLO Vipin Yadav Death Case) मनकापुर विधानसभा में BLO ड्यूटी पर तैनात और जैतपुर माझा के प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के रूप में कार्यरत विपिन यादव की मंगलवार देर रात लखनऊ के KGMU में इलाज के दौरान मौत हो गई। ग्रामीणों और परिवार के अनुसार, विपिन ने ड्यूटी के मानसिक और शारीरिक दबाव के चलते जहर खा लिया था।
परिवार का आरोप—ड्यूटी प्रेशर ने तोड़ी हिम्मत
गंभीर हालत में विपिन ने अपने साथियों से कहा था कि “हर दिन धमकी, हड़कियां और काम का बोझ… अब सहा नहीं जाता।” जौनपुर जिले के मूल निवासी विपिन को पहले गोंडा मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, लेकिन हालत बिगड़ने पर उन्हें तत्काल लखनऊ रेफर किया गया, जहाँ डॉक्टरों की कोशिशों के बावजूद उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मौत की खबर फैलते ही पूरे जिले में शोक और आक्रोश की लहर दौड़ गई।
शिक्षक और BLO भारी दबाव में काम कर रहे
ग्रामीणों और सहकर्मियों का कहना है कि चुनाव ड्यूटी के दौरान BLO और शिक्षकों पर दबाव और कार्यभार असहनीय होता जा रहा है। एक शिक्षक ने बताया—
“दिन में स्कूल, शाम को BLO ड्यूटी, रात को डेटा, और हर समय फोन पर रिपोर्टिंग… इंसान मशीन नहीं है।”
क्षेत्र में चर्चा है कि प्रशासन केवल आदेश जारी करता है, लेकिन जमीनी कठिनाइयों को समझने की कोशिश नहीं करता।
इलाके में गम और गुस्सा, कर्मचारी संगठन में उबाल
मनकापुर, नवाबगंज, करनैलगंज, और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बुधवार सुबह से ही दुकानों, चौराहों और बाजारों में इसी मुद्दे पर चर्चाएँ होती रहीं।
लोगों का कहना है—
“जब सरकारी नौकरी करने वाले ही सुरक्षित नहीं हैं, तो बाकी जनता का क्या होगा?”
इसी बीच नवाबगंज में दूध विवाद से फैली दहशत
इसी दिन नवाबगंज थाना क्षेत्र में स्थित झीलिया चौराहे पर दूध में मिलावट को लेकर विवाद ने बड़ा रूप ले लिया। जैतपुर मान्य निवासी विष्णु पुत्र रामदेव ने बताया कि सुबह करीब 8 बजे दूध में अधिक मात्रा में पानी मिलने पर उन्होंने दूध लेने से मना किया। इसके बाद विरोधी पक्ष लाठी-डंडा और सरिया लेकर वापस आया और दुकान पर हमला कर दिया।
घटना की जानकारी मिलते ही स्थानीय पुलिस और RPF मौके पर पहुँची, लेकिन तब तक दुकान तोड़फोड़ का शिकार हो चुकी थी और कई लोग घायल हो गए।
पुलिस अधिकारी और प्रशासनिक अफसर मौके पर पहुँचे और कहा जा रहा है कि दोनों घटनाओं की अलग-अलग जांच की जा रही है। प्रशासन का दावा है कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी और पूरे मामले की रिपोर्ट तैयार की जा रही है।
लेकिन कर्मचारियों और ग्रामीणों का सवाल है—“जाँच के नाम पर फाइल कब तक दबाई जाएगी? व्यवस्था कब बदलेगी?”
दोनों घटनाओं ने जिले में सिस्टम, सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और प्रशासनिक कार्य-संस्कृति को लेकर गम्भीर सवाल खड़े कर दिए हैं। BLO और शिक्षकों के संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि कार्यभार कम करने और मानसिक सहायता प्रणाली स्थापित करने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो बड़े आंदोलन की नौबत आ सकती है। सामाजिक कार्यकर्ता नसीम खान ने कहा, “सरकार हर चुनाव से पहले वादा करती है कि व्यवस्था सुधारेगी, लेकिन जमीनी हालात पहले से ज्यादा बिगड़ते जा रहे हैं। लोग अपनी जान देकर सिस्टम को बचा रहे हैं।” जनता अब यह उम्मीद कर रही है कि विपिन यादव की मौत बेकार न जाए और सरकार ऐसे मामलों को संवेदनशीलता से लेते हुए कर्मचारियों के लिए सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सहायता नीति लागू करे। समाज का सवाल साफ है—“कितने विपिन यादव और मरेंगे, तब बदलाव आएगा?” अब गेंद सरकार और प्रशासन के पाले में है और पूरा गोंडा जवाब की प्रतीक्षा कर रहा है।
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