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संस्कृति कर्मी भी राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

लखनऊ । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) ने कहा कि संस्कृति कर्मी भी (Cultural Worker also) राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है (Play an important role in Nation Building) । योगी आदित्यनाथ ने भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के शताब्दी महोत्सव के शुभारंभ पर शुभकामनाएं देते हुए यह बात कही ।

योगी आदित्यनाथ ने इस बात पर बल दिया कि राष्ट्र की आत्मा उसकी संस्कृति में होती है। उन्होंने कहा कि जैसे किसी मनुष्य की आत्मा उसके शरीर से संबंध तोड़ देती है तो शरीर निस्तेज हो जाता है, उसी प्रकार राष्ट्र के जीवन में भी होता है। किसी भी राष्ट्र की संस्कृति को उससे अलग कर दिया जाए तो राष्ट्र निस्तेज हो जाता है। वह खंडहर में परिवर्तित हो जाता है और अपनी पहचान को खो देता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह के शुभारंभ कार्यक्रम में कहा कि यह अवसर हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार, भारत की कला, स्वर व लय ने अपनी पहचान को विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए जो निरंतरता दी, उसी के बदौलत हमारी सनातन संस्कृति विश्व में खुद को स्थापित करने और आगे बढ़ाने में सफल हुई है। उन्होंने कहा कि कलाकार की कला एक ईश्वरीय गुण है जिसकी हमें अवमानना नहीं करनी चाहिए। कलाकार किसी भी विधा से जुड़ा हो, उसे प्रोत्साहित करना चाहिए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के शताब्दी महोत्सव के शुभारंभ पर शुभकामनाएं देते हुए कहा कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी भारत की सांस्कृतिक चेतना, स्वर, लय और संस्कार को इस संस्थान ने एक नई पहचान दी है। उन्होंने कहा कि भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय ने पिछले 100 वर्षों में भारतीय संगीत, नृत्य, नाट्य और ललित कलाओं को न केवल संरक्षित किया है, बल्कि उन्हें आधुनिक शैक्षणिक व्यवस्था से जोड़कर प्रतिष्ठित भी किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक संस्कृति कर्मी भी राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दिशा में भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय से जुड़े सभी महानुभावों के योगदान के लिए उन्होंने कृतज्ञता व्यक्त की। मुख्यमंत्री योगी ने इस अवसर पर पंडित विष्णु नारायण भातखंडे को श्रद्धांजलि भी अर्पित की।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 1940 में गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर ने एक पत्र जारी कर इस संस्थान को विश्वविद्यालय के रूप में संबोधित किया था। यह प्रसन्नता का विषय है कि पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की भावनाओं के अनुरूप इस संस्थान को विश्वविद्यालय का स्वरूप प्रदान किया जा सका। वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ और वर्ष 1950 में संविधान लागू हुआ। इसके बाद वर्ष 2017 तक अनेक सरकारें आईं और गईं, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल राम नाइक ने भातखंडे संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के विषय में उनसे संवाद किया। उन्होंने बताया कि प्रस्ताव आने में देर हुई, विभाग से निरंतर संवाद हुआ और अंततः वर्ष 2022 में सरकार ने इसे विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता दी। यह उत्तर प्रदेश का पहला संस्कृति विश्वविद्यालय है। उन्होंने कुलपति प्रो. माण्डवी सिंह की सराहना करते हुए कहा कि उनके द्वारा विश्वविद्यालय का कुलगीत और लोगो ‘नादाधीनं जगत्’ थीम पर आधारित किया गया, जिसका अर्थ है-पूरा जगत नाद के अधीन है। यह जीवन की सच्चाई को दर्शाता है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इस सृष्टि का पहला स्वर ओंकार है। उन्होंने नाद योग का उल्लेख करते हुए कहा कि विज्ञान, अध्यात्म और संस्कृति तीनों ही इसकी पुष्टि करते हैं। भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय का विजन भी यही है कि नाद के अधीन पूरा जगत है। उन्होंने कहा कि संगीत की विभिन्न विधाओं के माध्यम से इसी नाद की पहचान करना साधना का विषय है। विश्वविद्यालय से जुड़े पूर्व कलाकारों को सम्मानित किए जाने पर उन्होंने कहा कि ये कलाकार न केवल भातखंडे की परंपरा, बल्कि उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक मूल्यों को भी वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं। कॉफी टेबल बुक के विमोचन पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आने वाले समय में यह पुस्तक प्रेरणा का कार्य करेगी। देश की आज़ादी के शताब्दी महोत्सव के साथ जब विश्वविद्यालय जुड़ रहा होगा, तब यह कॉफी टेबल बुक अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध होगी।

मुख्यमंत्री योगी ने पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के योगदान को स्मरण करते हुए कहा कि वर्ष 1926 में देश औपनिवेशिक शासन के अधीन था। उस समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित थी और संगीत तथा कला के लिए मंच उपलब्ध नहीं थे। उन्होंने कहा कि उस दौर में पंडित भातखंडे ने भारतीय संगीत को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। शास्त्रीय अनुशासन, सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम, राग-ताल का वर्गीकरण, क्रमिक पद्धति और गुरु-शिष्य परंपरा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ना उनका ऐतिहासिक योगदान था। यह कार्य केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति को आत्मसम्मान, आत्मगौरव और स्थायित्व देने का प्रयास था।