पांच साल की उम्र में जुड़वां बच्चों को आठ-नौ महीने तक बुखार बना रहने से परेशान मां को कुछ सूझ नहीं रहा था। अर्जुनगंज निवासी सुनीता (बदला हुआ नाम) को जो जैसा बताया वैसे ही इलाज कराया, हजारों रुपये खर्च हो गए लेकिन कोई आराम नहीं मिला। पैसे ख़त्म होने पर इलाज के लिए सिविल अस्पताल पहुँचीं तो पता चला कि बच्चों को टीबी है। चिकित्सक ने बताया कि यह तो अच्छा रहा कि बच्चों को समय से बीसीजी का टीका लगा था जिससे टीबी का संक्रमण अन्य अंगों तक नहीं फ़ैल पाया ।
सुनीता बताती हैं कि उनके पति कपड़े की दुकान में काम करते हैं, जिससे किसी तरह घर चल पाता है। निजी अस्पतालों में महंगी जांच के लिए पैसे नहीं थे । इसलिए दोनों बच्चों को सिविल अस्पताल में दिखाया, जांच के बाद दोनों ही बच्चों को क्षय रोग की पुष्टि हुई | दोनों ही बच्चों के दाहिने कान के पीछे की तरफ गाँठ में टीबी थी। आगे के इलाज़ के लिए उन्हें डॉट सेंटर कैंट अस्पताल रेफर कर दिया। साढ़े तीन माह से दोनों बच्चों का इलाज़ कैंट अस्पताल में चल रहा है। एक संस्था ने बच्चों को गोद लेकर पोषक आहार भी मुहैया करा रही है।
बच्चों की सुधरती सेहत को देखकर सुनीता खुश हैं। उनको भरोसा है कि बच्चे जल्द ही पूरी तरह स्वस्थ हो जायेंगे क्योंकि आशा कार्यकर्ता से लेकर चिकित्सक तक उनकी पूरी मदद कर रहे हैं। साढ़े तीन माह पहले लड़के का वजन 15 किलो व लड़की का 14 किलो था, जिसमें दो से तीन किलो बढोतरी हुई है। बच्चे अब खेलने-कूदने लगे हैं और स्कूल भी जाने लगे हैं। टीबी चैम्पियन ज्योति ने इस दौरान जाँच से लेकर इलाज तक में सुनीता की भरपूर मदद की, जिससे भरोसा बढ़ा ।
सुनीता कहती हैं कि मेरे मन में अभी भी एक दुविधा बनी है कि बच्चों को बीसीजी का टीका लगने के बाद भी टीबी क्यों हुई ।
इस पर पीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पियाली बताती हैं कि बीसीजी का टीका लगने का ही नतीजा रहा कि इतने लम्बे समय तक सही इलाज़ न मिल पाने पर भी दोनों बच्चें गंभीर टीबी से ग्रसित नहीं हुए । बीसीजी का टीका शिशुओं व बच्चों में क्षय रोग को फैलने से रोकता है । इसलिए जन्म के तुरंत बाद ही यानि पहले दिन ही यह शिशुओं को लगाया जाता है। डॉ. पियाली बताती हैं कि यह टीका बच्चों को किसी अनहोनी से सुरक्षित बनाता है । इस टीके के लगने से टीबी का प्रसार दूसरे अंगों में नहीं होता है ।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ आर.वी. सिंह का कहना है कि टीबी की पुष्टि होने के बाद ज्यादातर लोगों को एक ही बात का डर सताता है कि वह ठीक होंगे कि नहीं । ऐसे में काउंसलिंग की बड़ी भूमिका होती है । काउंसलिंग टी.बी चैंपियन के माध्यम से की गयी हो तो इसका और गहरा असर होता है । दो से तीन बार की बातचीत के क्रम में उन्हें सब समझ आने लगता है । ऐसे में मरीज और परिवार का आत्मविश्वास भी बढ़ता है । इसके साथ ही सरकार द्वारा टीबी के प्रत्येक रोगी को जांच एवं उपचार दिया जा रहा है, जिसका एक भी पैसा नहीं पड़ता है । इसके साथ ही इलाज के दौरान 500 रुपये प्रतिमाह पोषण भत्ता के रूप में दिए जा रहे हैं। सामुदायिक भागीदारी के तहत रोगियों को गोद लिया जा रहा है ताकि साल 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का सपना साकार किया जा सके ।