प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा शुरू हो चुकी है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में ‘स्टेट गेस्ट’ के तौर पहुंचने वाले पीएम मोदी दुनिया के तीसरे नेता है. ये भारत और अमेरिका के मजबूत होते रिश्ते की गवाही देने के लिए काफी है. संभवतया यही वजह है कि अमेरिका भी चाहता है भारत जल्द से जल्द 30 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बने. वहीं इंडिया के 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी तो उसे बहुत जल्द बनने की उम्मीद है. आखिर क्यों अमेरिका को भारत पर इतना भरोसा है…
भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत और मौजूदा समय में यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल के चेयरमैन अतुल केशप कहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी का ये पहला अमेरिका ‘ऑफिशियल स्टेट विजट’ है. अमेरिका की विदेश नीति में ‘स्टेट विजिट’ के लिए सिर्फ भरोसेमंद सहयोगियों को ही आमंत्रित किया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले बाइडेन के कार्यकाल में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून शुक सियोल को ही ये सम्मान मिला है. इस तरह देखा जाए तो ये अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते भरोसे को दिखाता है.
बताते चलें, प्रधानमंत्री मोदी से पहले भारत से सिर्फ 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और 1963 में राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ही अमेरिका के ‘स्टेट गेस्ट’ रहे हैं.
भारत और अमेरिका को जोड़ते दोनों देशों लोग
भारत और अमेरिका को साथ जोड़ने में सबसे मुख्य पहलू, दोनों देशों का लोकतांत्रिक होना है. अमेरिका जहां दुनिया का सबसे पुराना तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. दोनों ही देश कोविड महामारी से उबरे हैं, इसलिए इस बार बाइडेन और मोदी की मुलाकात उन पहलुओं पर होगी जहां ये साझे लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं.
भारत और अमेरिका के बीच अच्छे संबंध की वजह दोनों देशों के लोगों के बीच ‘पीपुल-2-पीपुल’ कनेक्ट होना है. अमेरिका में भारतीय समुदराय की बड़ी आबादी रहती है. यही वजह है कि अमेरिका के कई फैसलों पर इसकी छाप दिखती है, जैसे व्हाइट हाउस में दिवाली का मनाया जाना, उस दिन कई स्टेट में स्कूल की छुट्टी होना.
रक्षा के क्षेत्र में अमेरिका का मजबूत साझेदार भारत
भारत और अमेरिका के बीच साझा लक्ष्यों में रक्षा सहयोग बढ़ाना है. भारत को जहां अमेरिका से मौजूदा और भविष्य की रक्षा तकनीकों की दरकार है, वहीं भारत अब क्वाड का सदस्य है जो अमेरिका के लिए काफी अहम है. अमेरिका को लगता है कि चीन के साथ संतुलन बनाने में भारत अहम भूमिका निभा सकता है. रक्षा क्षेत्र में सहयोग से पहले बेंगलुरू और सिलिकॉन वैली के संबंध में भारत और अमेरिका के रिश्तों की गहराई को समझा जा सकता है.
बीते 25 सालों में दोनों देशों की रक्षा साझेदारी बढ़ी है. दोनों ने कई युद्धाभ्यास और सैन्य प्रशिक्षण साथ किए हैं. वहीं अमेरिका के टॉप-5 रक्षा उत्पाद भी भारत ने हासिल किए हैं. अब दोनों देशों के बीच जो नए रक्षा संबंध बन रहे हैं, वो लंबे समय तक चलने वाली साझेदारी है.
500 अरब डॉलर का होगा बिजनेस
भारत के लिए अमेरिका एक बड़ा एक्सपोर्ट डेस्टिनेशन भी है. ये सबसे कम शुल्क वाला और सबसे अधिक खुला देश है. एक्सपोर्ट करने वाले कई देशों का भला अमेरिका की बदौलत हुआ है. अब देखना ये है कि भारत और अमेरिका के बीच का व्यापार 500 अरब डॉलर के स्तर पर कैसे पहुंचता है.
व्यापार से इतर निवेश के लिए भी भारत को अमेरिका की जरूरत है, ताकि बेहतर नौकरियां पैदा हो सकें. वहीं अमेरिका के लिए अपनी सप्लाई चेन को डायवर्सिफाई करना जरूरी होता जा रहा है. इसलिए वह चाहता है कि उसकी कंपनियों को भारत में अच्छी डील मिले. आने वाले समय में दोनों देश की सरकारें इसके लिए काम करेंगी ही.
भारत बने 30 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी
अब बात, अमेरिका क्यों चाहता है कि भारत 30 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बने. दरअसल 18वीं सदी के अंत से अमेरिका की नीति दुनिया में लोकतंत्र को बढ़ावा देने की रही है. उसके हिसाब से ये शासन का सबसे बेहतरीन तरीका है. इस मिशन में भारत से मजबूत सहयोगी उसे भला कौन मिलेगा? इसलिए अमेरिका चाहता है कि भारत 30 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बने, ताकि लोगों के बीच समृद्धि बढ़े और संघर्ष का जोखिम कम से कम रहे. इसलिए भी 21वीं सदी में भारत के उदय को लेकर अमेरिका उसका मजबूत सहयोगी बनना चाहता है.