साल 1940 में पुणे के बारामती में 12 दिसंबर को शारदाबाई गोविंदराव पवार ने एक बेटे को जन्म दिया और जन्म के तीन दिन ही बेटे ने राजनीतिक बैठक में हिस्सा लिया। मां शारदाबाई गोविंदराव ने बेटे को घूटी पिलाकर 15 दिसंबर को पुणे लोकल बोर्ड की एक बैठक में ले गईं। यह कोई और नहीं बल्कि भारतीय राजनीति के भीष्मपितामह कहे जाने वाले ‘शरद पवार’ के उदय की कहानी है…
अलग है पवार की सियासत
बड़े-बड़े नेताओं को परास्त करने का हुनर रखने वाले शरद पवार को समझना मुश्किल है। क्योंकि विरोधी पार्टियों में उनकी दो अलग-अलग छवियां दिखाई देती है। इतना ही नहीं 6 दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति इन्हीं के इर्द-गिर्द दिखाई देती है। कभी खुद प्रतिनिधित्व करते हैं तो कभी दूसरो को अपना आशीर्वाद देते हैं। इतना तो तय है कि विरोधी ‘शरद पवार’ से ज्यादा दिनों तक नाराज नहीं रह पाते। इसे चाहे आप शरद पवार का बड़प्पन समझिये या फिर उनकी करिश्माई शख्सियत…
कांग्रेस में रहते हुए शरद पवार ने इंदिरा गांधी का विरोध किया लेकिन राजीव गांधी के करीब आ पहुंचे। भाजपा ने जब सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाया तो शरद पवार ने भी कांग्रेस अध्यक्षा का विरोध किया। इसके बावजूद राजनीतिक राय-मशवरा करने के लिए सोनिया गांधी को शरद पवार की जरूरत महसूस होती थी। शरद पवार महाराष्ट्र में भाजपा का गेम बिगाड़ते और देवेंद्र फडणवीस से सत्ता छीन लेते फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिय माने जाते। यह सिर्फ शरद पवार ही कर सकते हैं और यूं ही कोई शरद पवार बन भी नहीं पाता।
हमेशा ताकतवर रहते हैं पवार
साल 2019 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव शायद ही कोई भूला हो। भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन चुनाव के परिणाम सामने आने के बाद स्थिति बदल गई। शिवसेना मुख्यमंत्री पद की मांग करने लगा लेकिन भाजपा को यह मंजूर नहीं था। ऐसे में भाजपा और शिवसेना के बीच का गठबंधन समाप्त हो गया और चुनाव बाद एक नए गठबंधन की तैयारी होने लगी।
इस गठबंधन में शिवसेना और कांग्रेस को एक साथ आना था लेकिन यह एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बिना संभव नहीं था। शरद पवार के घर में बैठकों का दौर शुरू हुआ और सबकुछ तय हो गया। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाया। लेकिन देखते ही देखते अजीत पवार ने चाचा शरद पवार को धोखा देते हुए तड़के सुबह भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। जिसके बाद चाचा पवार ने सियासी शतरंज की ऐसी चाल चली की अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और देवेंद्र फडणवीस के नाम एक रिकॉर्ड दर्ज हो गया। वह रिकॉर्ड था सबसे कम समय तक मुख्यमंत्री रहने का।
देवेंद्र फडणवीस अपने दूसरे कार्यकाल में महज 4 दिन तक ही सत्ता में रहे और शरद पवार की चाल के सामने अपने घुटने टेक दिए। 288 सदस्यीय विधानसभा में शिवसेना के 56, राकांपा के 54 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं और इसी के दम पर शरद पवार ने न सिर्फ भतीजे की रणनीति विफल की बल्कि बाद में उसे महाविकास अघाड़ी सरकार में उपमुख्यमंत्री बना दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में एकदफा कहा था कि राजनीति की हवा किस तरफ चलेगी, इसे जानना चाहते हैं तो शरद पवार के पास बैठिए। राजनीतिक गलियारों में शरद पवार को लेकर एक बात काफी ज्यादा टहलती रहती है। कहते हैं कि शरद पवार जब ना कहें तो इसका मतलब हां होता है और जब हां कहें तो मतलब ना होता है…
सियासत में 50 वर्ष से ज्यादा का अनुभव
शरद पवार अपने ग्यारह भाईयों में से एक हैं और बढ़ती हुई उम्र में भी वो खुद को जवान महसूस करते हैं। शरद पवार साल 1967 में पहली बार बारामती से विधानसभा पहुंचे थे और उनके सामने कोई भी विरोधी नहीं टिक पाता था। 1990 तक उन्होंने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। साल 1984 में वो बारामती से सांसद बने थे लेकिन 1985 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था।
बारामती सीट पर पवार परिवार का कब्जा
बारामती सीट से शरद पवार लगातार 6 बार विधायक रहे। इसके बाद उनके भतीजे अजीत पवार लगातार 7 बार विधायक रहे। शरद पवार ने एक बार कहा था कि मैं चुनाव के लिए कम जाता हूं लेकिन पांच साल में ज्यादा जाता हूं। 1978 के चुनाव में टुकड़ों में बंटी कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था। कांग्रेस-यू और कांग्रेस-आई दोनों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। उस वक्त शरद पवार ने अपने गुरु यशवंतराव चव्हाण के साथ कांग्रेस-यू में शामिल हो गए। लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तो उन्होंने जनता पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस-आई के साथ मिलकर सरकार बना ली।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने। तब उनकी सरकार में शरद पवार ने रक्षा मंत्रालय का पदभार संभाला था। कई विभागों का पदभार संभाल चुके शरद पवार को कांग्रेस ने निष्कासित कर दिया था। जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया। जिसके साथ कांग्रेस महाराष्ट्र में गठबंधन साथी है।
साल 2019 में शरद पवार का एक ऐसा वीडियो सामने आया था जिसने एनसीपी की खोई हुई जमीन वापस ला दी थी। पश्चिमी महाराष्ट्र के सातारा में भारी बारिश के बीच शरद पवार ने रैली को संबोधित किया। दरअसल, शरद पवार अपने पुराने मित्र श्रीनिवास पाटिल के लिए सतारा में रैली कर रहे थे और चुनाव परिणाम में बारिश में भीगते हुए शरद पवार की मेहनत रंग भी लाई। इस चुनाव में श्रीनिवास पाटिल ने 80 हजार से ज्यादा मतों से चुनाव जीता था।