गुजरात में कोरोना संकट के बीच ऑक्सीजन और बेड की कमी सहित अन्य चिकित्सकीय अव्यवस्थाओं का मामला गुजरात हाई कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट ने कोरोना परीक्षण करवाने, अस्पताल में बेड पाने और ऑक्सीजन मिलने संबंधी लोगों की समस्याएं दूर न कर पाने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि राज्य के सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट होने चाहिए। आगे की सुनवाई अगले मंगलवार को होगी।

कोरोना संकट से जुड़े मामलों पर अदालत सख्त
मंगलवार को गुजरात हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति भार्गव कारिया की पीठ ने कोरोना संबंधी मामलों का स्वत: संज्ञान लेने पर सुनवाई की। राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने हाई कोर्ट के समक्ष दलीलें रखीं। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में पहले ही स्वीकार किया था कि बेड की कमी है। उन्होंने बताया कि 15 मार्च 2021 को 100 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन किया गया था, जबकि 55 मीट्रिक टन की आवश्यकता थी। लेकिन अचानक ऑक्सीजन की मांग बढ़ गईं।
हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि 108 को पहले आओ, पहले पाओ पर ध्यान देना चाहिए। अहमदाबाद के चार अस्पतालों में केवल 108 मरीजों को भर्ती किया गया है। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि राज्य में कोरोना रोकने और मरीजों के इलाज के लिए क्या योजना है। ऑक्सीजन देने के लिए आपकी क्या प्रक्रिया है?
महाधिवक्ता त्रिवेदी ने कोर्ट को बताया कि पीएसए ऑक्सीजन संयंत्र के लिए केंद्र सरकार द्वारा अनुमति दी जाती है, राज्य में आठ एसए के लिए अनुमति मिल गई थी। जिसमें एक को ब्लैकलिस्ट किया गया है। 7 में से 4 एसए को लगाया गया है और शेष 3 एसए को 3 मई को चालू किया जाएगा। कोर्ट ने सरकार से 4 मई तक सभी व्यवस्थाओं के साथ जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
महाधिवक्ता त्रिवेदी ने कहा कि हम सरकार से मरीजों की हालत के आधार पर अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहेंगे, न कि पहले-पहले पहले आओ आधार पर। अस्पताल के बाहर बेड की उपलब्धता के लिए एक बोर्ड भी लगवाया जाएगा।
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एडवोकेट एसोशिएशन की ओर से कोर्ट में पेश हुए वकील अमित पांचाल ने कहा कि गाइडलाइन के अनुसार किसी भी मरीज को प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता है। 900 बेड के अस्पताल के बाहर मरीज अस्पताल के बाहर भी मर रहे हैं। 675 एम्बुलेंस के खिलाफ प्रतिदिन 2,000 से अधिक मामले आ रहे हैं।
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