जेएनयू की कुलपति और कपिल देव की अंग्रेजी पर सवाल करने वाले कौन

आर.के. सिन्हा

अपने देश में ऐसा तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी तबका उभरा है, जो मानता है कि मात्र वही पढ़ा-लिखा और शिक्षित है जिसका अंग्रेजी ज्ञान शेक्सपियर के नाटकों के पात्र जैसा क्लिष्ट होता है। ये आजाद भारत में रहते हुए गुलाम मानसिकता से अपने को बाहर निकाल पाने में असमर्थ हैं। यह भी संभव है कि इस गुलामी की सोच से निकलना ही न चाहते हों। इनके निशाने पर अब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में हाल ही में नियुक्त हुईं कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित हैं। प्रोफेसर शांतिश्री न केवल जेएनयू की नई कुलपति हैं, बल्कि वे यहां की पहली महिला कुलपति भी हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी महिला ने यह पद संभाला है।

अंग्रेजी के अतिरिक्त सभी अन्य भाषाओं को हेय दृष्टि से देखने वाले कथित बुद्धिजीवी और दूसरे विक्षिप्त मानसिकता के शिकार दावा कर रहे हैं कि प्रोफेसर शांतिश्री को अंग्रेजी भाषा का पर्याप्त ज्ञान नहीं है। उनके किसी पत्र को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए उसमें व्याकरण संबंधी गलतियों का हवाला दिया जा रहा है। प्रोफेसर शांतिश्री सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रही हैं। उन पर लगाए जा रहे समस्त आरोप बेशर्मी की सारी सीमाओं को लांघ रहे हैं। जो शख्स दशकों से पढ़ और पढ़ा रहा हो, उनके ज्ञान को चुनौती देने वाले कभी खुद भी अपनी गिरेबान में झांक लें कि क्या उन्हें भी कोई भाषा ढंग से आती है?

क्या वे अपनी मातृभाषा को ही सही से लिख-बोल पाते हैं? ये सोशल मीडिया के वीर उस प्रोफेसर शांतिश्री के ज्ञान पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं, जिसने कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। इसके अलावा उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, मद्रास से इतिहास और सोशल साइकोलॉजी में बीए और पॉलिटिकल साइंस में एमए किया है। यही नहीं उन्होंने जेएनयू से ही इंटरनेशनल रिलेशंस में एमफिल और पीएचडी भी की है।

अंग्रेजी के पक्ष में बकने वाले यह भी जान लें कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग, जर्मन, जापान और फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष अपनी-अपनी भाषाओं में बोलते हैं। इन्हें अंग्रेजी बोलने की कतई जरूरत नहीं होती। तो फिर हमारे ही देश में अंग्रेजी जानने समझने को इतना फालतू महत्व क्यों दिया जाता है? क्या धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने मात्र से ही शशि थरूर और मणिशंकर अय्यर जैसों को भारत में शिक्षित माना जाएगा? बाकी सबको अशिक्षित और अनपढ़ ही समझा जाएगा। कौन नहीं जानता कि हमारे यहां का एक वर्ग शशि थरूर की अंग्रेजी से हर वक्त अभिभूत रहता है। इसका एक बड़ा कारण शशि थरूर का अंग्रेजी का ज्ञान है। वे बेहतर लेखक और सांसद भी हैं। इस बारे में कोई विवाद नहीं है। वे अंतरराष्ट्रीय मामलों के विद्वान हैं, यह भी सच है। पर इस तरह के गुण बहुत सारे अन्य लोगों में भी हैं। हां, चूंकि वे अंग्रेजी नहीं बोलते तो उन्हें विद्वान नहीं माना जाता।

इतना तो मानना होगा कि थरूर साहब को समाज और मीडिया इसलिए अतिरिक्त महत्व देता है, क्योंकि वे प्राय: अंग्रेजी में ही बोलते हैं। उनके साथ सेल्फी लेने वालों की हर जगह भीड़ सी लग जाती है। यानी इनके नायक शशि थरूर हैं। इन्हीं शशि थरूर को तब तकलीफ होती रही जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कुछ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में अपना वक्तव्य हिन्दी में देते हैं। शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डावोस के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में हिन्दी में दिए गए भाषणों से नाखुश नजर आते हैं। उन्होंने सुषमा स्वराज की भी निंदा की थी, जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को हिन्दी में संबोधित किया था। थरूर प्रधानमंत्री मोदी के डावोस में हिन्दी में अपनी बात रखने का यह कहते हुए विरोध कर रहे थे कि हिन्दी में बोलने से उनकी बात को दुनियाभर की मीडिया में जगह नहीं मिलेगी। यह बात दीगर है कि मोदी के संबोधन को न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, बीबीसी ने शानदार तरीके से कवर किया था। वैसे शशि थरूर के पिता और मेरे मित्र स्वर्गीय चंद्रन थरूर जब भी पटना आते थे तो मेरे साथ एक हिंदी नाटक देखने का आग्रह अवश्य करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि इससे उनकी हिंदी संवाद शैली में सुधार होता है।

प्रोफेसर शांतिश्री की अंग्रेजी में मीनमेख निकालने वाले वही हैं जिन्हें शशि थरूर की अंग्रेजी प्रभावित करती है। अंग्रेजी और विधि शास्त्र के महान विद्वान देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सामान्यत: अपनी मातृभाषा भोजपुरी में ही बतियाते थे। जो हिन्दी समझते थे, उनसे हिंदी में और जिन्हें अंग्रेजी छोड़कर कोई भाषा समझ में नहीं आती थी, मात्र उन्हीं से अंग्रेजी में बात करते थे।

इस बीच, टाटा समूह के चेयरमैन नटराजन चंद्रशेखरन के संबंध में कहा जाता है कि वे जब अंग्रेजी में नहीं बोल रहे होते हैं तो अपनी मातृभाषा तमिल में ही बोलना पसंद करते हैं। चंद्रशेखरन ने स्कूली शिक्षा अपनी मातृभाषा तमिल में ही ग्रहण की थी। ये जानकारी अपने आप में खास इस दृष्टि से है कि तमिल भाषा से स्कूली शिक्षा लेने वाले विद्यार्थी ने आगे चलकर कॉरपोरेट जगत में ऊंचा मुकाम हासिल कर लिया। कॉरपोरेट संसार के बारे में कहा जाता है कि वहां अंग्रेजी जानना जरूरी है। यह प्रचार शत-प्रतिशत मिथ्या है। अब मुकेश अंबानी से लेकर सुनील भारती मित्तल सरीखे अनेक कॉरपोरेट जगत के बड़े नाम किसी सम्मेलन में हिन्दी में ही अपनी बात रखते हैं और उसे ध्यानपूर्वक सुना जाता है। जब कपिल देव ने 1982 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में धमाकेदार दस्तक दी तब भी कई अंग्रेजी सोच के लोग उनकी अंग्रेजी पर मुस्कराया करते थे। तब कपिल देव ने एकबार उन्हें करारा जवाब देते हुए कहा था कि बेहतर होगा कि वे भारतीय टीम का कप्तान ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से शिक्षित इंसान को बना दें। क्या कपिल देव का खिलाड़ी के रूप में कोई मुकाबला कर सकता है?

पिछले साल नीरज चोपड़ा ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद देश के सबसे बड़े नायक बन गए थे। उनसे तमाम मीडिया वाले इंटरव्यू ले रहे थे। तब एक रिपोर्टर ने कहा- ‘आई वान्ट टू आस्क…’ वह अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि नीरज चोपड़ा ने जवाब दिया- ‘भाई, हिंदी में पूछ लो… हिंदी में जवाब दे दूंगा…।’

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देखिए सीधी-सी बात यह है कि आप अंग्रेजी बोलिये, उससे प्यार कीजिए, यह आपका मसला है। इससे किसी को कोई सरोकार नहीं है। लेकिन, यह याद रहे कि आप किसी के अंग्रेजी के ज्ञान पर सवाल न करें तो बेहतर होगा। अगर आप किसी की अंग्रेजी की कमी निकालेंगे तो याद रखें कि आपको भी कपिल देव या नीरज चोपड़ा जैसे लोग मिलेंगे जो आपको कायदे से जवाब देंगे।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)