उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड की ओर कदम बढ़ा लिया है. अगर ये वहां लागू हो गया तो सभी धर्मों के लोगों के विवाह, उत्तराधिकार, संपत्ति और तलाक के अधिकारों के लिए एक जैसे कानून होगा. वैसे देश में ये कानून अब तक केवल एक राज्य में लागू है, इसके अलावा ना तो कभी केंद्र और ना अन्य राज्य सरकारों ने इस ओर कभी पहल की है. वैसे बेशक आप हैरान हो सकते हैं लेकिन जिस एक राज्य में समान नागरिक संहिता लागू है, वहां बाकी धर्मों को तो नहीं लेकिन वहां के हिंदुओं को शर्तों के साथ कई शादियों की आजादी है.
ये राज्य गोवा है. गोवा में जब पुर्तगाली शासन था, तब वहां पुर्तगाली सिविल कोड लागू किया गया. ये 1867 की बात है. तब तक भारत में ब्रिटिश राज में भी सिविल कोड नहीं बनाया गया था. लेकिन पुर्तगाल सरकार ने ऐसा कर दिया. जब पुर्तगाल सरकार ने गोवा उपनिवेश के लिए ये कानून बनाया तब गोवा में दो धर्म के लोग ही बहुलता में थे- ईसाई और हिंदू.
क्या था तब गोवा में हिंदुओं की शादियों का रिवाज
तब वहां के हिंदुओं में कई शादियों का रिवाज था और भारत में हिंदू और मुसलमान कई शादी कर सकते थे. लेकिन गोवा में जब समान नागरिक संहिता कानून बना तो इसने हर किसी के लिए एक ही शादी का प्रावधान किया.
प्रावधान ये था कि पहली पत्नी के रहते कोई भी व्यक्ति दूसरा विवाह नहीं कर सकता लेकिन ये कानून कुछ शर्तों के साथ केवल वहां पैदा हुए हिंदुओं को एक पत्नी के रहते दूसरे विवाह की इजाजत देता था. ये कानून अब भी उसी तरह लागू है.
जब गोवा आजाद हुआ तब क्या हुआ
जब गोवा आजाद हुआ तो नए राज्य में उसी सिविल कोड को अपना लिया गया तो पुर्तगालियों के शासन के तहत 93 सालों से वहां चल रहा था. ये हिंदुओं को कुछ स्थितियों में बहुविवाह की अनुमति देता है. इसके अनुसार
– 25 साल की उम्र तक अगर पत्नी से कोई संतान नहीं हो तो पति दूसरी शादी कर सकता है.
– 30 साल की उम्र तक अगर पत्नी पुत्र को जन्म नहीं दे पाती तो भी पति दूसरी शादी कर सकता है.
क्या स्थिति थी प्राचीन भारत में
वैसे अगर बहुविवाह की बात करें तो ब्रितानी राज में ही नहीं बल्कि प्राचीन भारत में एक पुरुष की कई शादियां बहुत सामान्य बात थी. राजा और बडे़ अफसर ऐसा खूब करते थे. इसे लेकर कोई प्रतिबंध नहीं था. कई राजाओं के यहां रानियों की फौज होती थी. जिस समय अंग्रेज भारत में शासन कर रहे थे, तब पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह के बारे में कहा जाता था कि उनके रनिवास में 80 से ज्यादा रानियां थीं. जिसमें कुछ को मुख्य रानियों का दर्जा हासिल था.
भारत के कई बड़े व्यापारी भी कई पत्नियां रखते थे. आजादी से पहले प्रसिद्ध उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया ने 06 शादियां कीं.
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ब्रिटिश राज में सिविल कोड
बाद में 1935 में जब ब्रिटिश राज में नागरिक सिविल कोड कानून लाया गया तब हिंदुओं और मुसलमानों को उनके व्यक्तिगत कानूनों के चलते एक शादी के दायरे से अलग रखा गया.