सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दो चैनलों को बड़ी राहत दी है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सोमवार को तेलुगू चैनल टीवी5 न्यूज और एबीएन आंध्र ज्योति के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाते हुए ‘देशद्रोह की सीमा’ को परिभाषित करने का आह्वान किया। आंध्र प्रदेश पुलिस ने एक प्राथमिकी में दोनों चैनलों पर देशद्रोह का आरोप लगाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा आदेश
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि समय आ गया है कि हम देशद्रोह की सीमा को परिभाषित करें। पीठ ने कहा कि इस तरह की प्राथमिकी मीडिया की स्वतंत्रता को दबाने का एक प्रयास है। इस बात पर जोर देते हुए कि हर चीज को देशद्रोह नहीं माना जा सकता, पीठ ने कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार का चैनलों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करना उनकी आवाज दबाने की कोशिश है।
चैनलों ने एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और अवमानना याचिकाएं भी दीं, जिनमें कहा गया है कि आंध्र पुलिस की कार्रवाई 30 अप्रैल के अदालत के आदेश का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टीवी चैनल प्रसारण कार्यक्रम और प्रिंट मीडिया प्रकाशन के विचार में सरकार की कितनी भी आलोचना की जाए, उसे देशद्रोह नहीं माना जा सकता। पीठ ने कहा कि वह मीडिया पर लगाए जा रहे ऐसे आरोपों के संदर्भ में देशद्रोह को परिभाषित करने का प्रयास करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर दोनों टीवी चैनलों की याचिकाओं और अवमानना याचिकाओं पर जवाब देने को कहा। साथ ही, कहा कि पुलिस टीवी चैनलों और पत्रकारों के खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाएगी।
टीवी5 न्यूज और एबीएन आंध्र ज्योति का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दी कि वाईएसआरसीपी के बागी सांसद रघुराम कृष्णम राजू के प्रेस बयानों को प्रकाशित करने के कारण दोनों चैनलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
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पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह) और 153ए (सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा देना) के तहत अपराधों के दायरे को परिभाषित करने की जरूरत है, खासकर मीडिया की आजादी के संदर्भ में। लूथरा ने जांच पर रोक लगाने की मांग की, लेकिन पीठ ने जवाब दिया कि वह फिलहाल केवल दंडात्मक कार्रवाई पर ही रोक लगाएगी।
राजू ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की जमानत रद्द करने के लिए सीबीआई की विशेष अदालत से अपील की थी। हफ्तों बाद 14 मई को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। शीर्ष अदालत ने 21 मई को इस संभावना का हवाला देते हुए जगन को जमानत दे दी कि हिरासत में उनके साथ बुरा व्यवहार किया गया।