सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों की रिहाई को लेकर इस बार यूपी सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है, सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ गणतंत्र दिवस पर कैदियों को रिहा करने की उत्तर प्रदेश सरकार की नीति को भेदभावपूर्ण व मनमाना करार दिया है। साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि उम्रकैद पाए उन कैदियों को भी प्रीमेच्योर (समर से पहले) रिलीज करने पर भी विचार करें जो किसी कारणवश राहत की गुहार नहीं लगा पाते।
जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस वी रामासुब्रह्मण्यम की पीठ ने कहा है कि एक वर्ष में सिर्फ किसी खास एक दिन पर उम्रकैद की सजा काट रहे कैदियों को प्रीमेच्योर रिलीज करने का मापदंड भेदभावपूर्ण है क्योंकि किसी अन्य वर्ग के कैदियों के लिए ऐसा नहीं है। पीठ ने यह भी कहा है कि ऐसा मापदंड होने का कोई आधार भी नहीं बताया गया है। पीठ ने कहा है कि अनुच्छेद-161 उम्रकैद की सजा पाए कैदियों पर भी समान रूप से लागू होता है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि हम उस नीति को भी अस्वीकार करते है जिसके तहत सिर्फ वहीं कैदी प्रीमेच्योर रिलीज के हकदार हैं जो रियायत का आवेदन दाखिल करते हैं।
वास्तव में शीर्ष अदालत उम्रकैद की सजा पाए कुछ कैदियों की रिट याचिकाओं पर विचार कर रही थी। ये याचिकाकर्ता कैदी 14 वर्ष कैद की सजा काट चुके हैं और सभी ने प्रीमेच्योर रिहाई की मांग की गई थी। ये सभी ऐसे कैदी थे जो 16 से 24 वर्ष तक की सजा काट चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गौर किया कि वर्ष 2018 की नीति जेलों में भीड़भाड़ कम करने के उद्देश्य से बनाई गई थी। कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी के इस दौर में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि जेलों से भीड़भाड़ कम की जाए।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह भी संभव है कि कैदियों को इस बारे में जानकारी न हो कि उन्हें रियायत के लिए आवेदन या और कुछ करना होता है। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने यूपी विधिक सेवा अथारिटी से न सिर्फ याचिकाकर्ताओं को बल्कि ऐसे अन्य कैदियों के बारे पर भी निगरानी रखने के लिए कहा है जो प्रीमेच्योर रिलीज होने की श्रेणी में आते हैं लेकिन किसी कारणवश आवेदन दाखिल करने में असमर्थ हैं। सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक जनहित में संबंधित अथॉरिटी को इस सबंध में विधिक सेवा अथॉरिटी से मिलकर काम करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते उसका यह दायित्व है कि वह समय-समय पर ऐसे कैदियों का असेसमेंट करें।