राम मंदिर ध्वजारोहण पर प्रधानमंत्री मोदी: विकसित भारत का नया संकल्प

अयोध्या। भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर बने भव्य राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा का ऐतिहासिक ध्वजारोहण न केवल अध्यात्म और आस्था का प्रतीक बना, बल्कि यह क्षण भारत की सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रीय संकल्प को भी नई ऊर्जा प्रदान करता दिखा। मंगलवार को आयोजित इस विशेष समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की आगामी विकास यात्रा, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और आत्मविश्वास से भरे राष्ट्र-निर्माण के विज़न को नई दिशा देते हुए कहा कि भारत को 2047 तक एक विकसित देश बनने के लिए अपनी जड़ों से जुड़कर, अपनी विरासत से ताकत लेते हुए और “गुलामों की सोच” से मुक्त होकर आगे बढ़ना होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि राम कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि मूल्य हैं, एक चेतना हैं, और जब तक भारत अपनी आत्मा में बसे इन मूल्यों को नहीं जगाएगा, तब तक विकास केवल शब्द बनकर रह जाएगा। उन्होंने कहा कि राम मंदिर के शिखर पर भगवा धर्म ध्वजा का फहराना केवल एक धार्मिक क्षण नहीं, बल्कि यह उस सभ्यता के आत्मविश्वास का जागरण है जिसने सदियों की चुनौतियों, संघर्षों और अन्याय का सामना करते हुए अपनी पहचान को जीवित रखा है। मोदी ने कहा कि सदियों पुराना इंतजार पूरा हुआ है और आज का दिन इतिहास के उन पन्नों को प्रकाश देता है जिनमें भारत की सांस्कृतिक धरोहर का संघर्ष और विजय दोनों दर्ज हैं।

कार्यक्रम में उपस्थित लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने भारत की विकास यात्रा का उल्लेख किया और कहा कि पिछले 11 वर्षों में देश ने समावेशी विकास को आधार बनाकर समाज के हर वर्ग—महिलाओं, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, वंचितों, किसानों, मजदूरों और युवाओं—को विकास के केंद्र में रखा है। उन्होंने कहा कि भारत केवल 2047 का लक्ष्य नहीं बना रहा, बल्कि आने वाले 1000 वर्षों की मजबूत नींव रख रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्र केवल वर्तमान के आधार पर नहीं बनता, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के सपनों और संकल्पों पर खड़ा होता है। मोदी ने कहा कि “हम पूछे नहीं गए थे तब भी यह देश था, हम नहीं रहेंगे तब भी यह देश रहेगा,” इसलिए जो भी निर्णय लिए जाएं, वह भारत की सनातन विरासत और दीर्घकालिक हितों के आधार पर होने चाहिए।

राम मंदिर ध्वजारोहण पर PM मोदी: विकसित भारत का नया संकल्प - Sarkari Manthan

प्रधानमंत्री ने आज के दिन के विशेष महत्व का जिक्र करते हुए कहा कि धर्म ध्वज पर बना ‘कोविदार’ का पेड़ भारतीय सभ्यता की उस पहचान का प्रतीक है जिसे अंग्रेज़ी शासन की नीतियों ने हमारी चेतना से दूर कर दिया था। उन्होंने 1835 में थॉमस मैकाले द्वारा लागू किए गए औपनिवेशिक शिक्षा मॉडल का उदाहरण देते हुए कहा कि इसी दिन से भारत के बच्चों, समाज और संस्थाओं को अपनी जड़ों से काटने का प्रयास शुरू हुआ था। उन्होंने कहा कि 2035 में जब मैकाले प्रणाली के 200 वर्ष पूरे होंगे, तब भारत को “गुलामी की मानसिकता” से पूरी तरह मुक्त होने का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत केवल भौतिक विकास से विकसित नहीं होगा बल्कि अपनी पहचान, संस्कृति, भाषा और गौरव को पुनर्जीवित करते हुए ही विश्व का नेतृत्व कर पाएगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का भारत “राममय” है, और यह क्षण उन सदियों के दर्द को शांत करता है जो समय के पन्नों में दबी चोट की तरह जीवित रहे। उन्होंने कहा कि भव्य राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा की स्थापना उन 500 वर्षों की संघर्षगाथा को सम्मान देती है जिसके बल पर यह मंदिर अपने अंतिम स्वरूप तक पहुंचा है। “यह धर्म ध्वजा केवल एक झंडा नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता के पुनरुत्थान का प्रतीक है,” प्रधानमंत्री ने कहा—“इसके भगवा रंग में सूर्यवंश की परंपरा की आभा है, ‘ॐ’ की ध्वनि में सृष्टि का आधार है, और कोविदार का पेड़ हमारी पहचान एवं गौरव की स्मृति को पुनर्जीवित करता है।”

प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर भारतीय समाज को यह संदेश दिया कि राम केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हमारे विचारों, आचरण और विकास के मॉडल में भी उपस्थित होने चाहिए। उन्होंने कहा कि भक्ति और सहयोग भारतीय समाज की आत्मा है, और राम राज्य का आदर्श केवल राजनीतिक कथन नहीं बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय कर्तव्यों पर आधारित एक संपूर्ण व्यवस्था है।

अपने संबोधन के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का यह दिन केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जागरण का उत्सव है। “हमारी विरासत हमारी शक्ति है,” उन्होंने कहा, “और अगर भारत को भविष्य में नई ऊंचाइयों तक पहुंचना है, तो उसे अपने अतीत पर गर्व, वर्तमान पर विश्वास और भविष्य के प्रति संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा।”