-गोरखपुर में बनेगा देश का पहला ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’, फरेंदा क्षेत्र के भारी-बैसी गांव में 5 एकड़ में बनेगा केंद्र, पिंजौर की तर्ज पर होगा विकसित
लखनऊ। गिद्ध पर्यावरण के लिए कितने जरूरी हैं इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि गिद्धों का एक दल एक मरे हुए सांड को सिर्फ 30 मिनट में साफ कर देता हैं। पिछले दो दशक से यूपी में गिद्धों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। गिद्ध लुप्तप्राय से हो गए हैं। पर अब इनकी संख्या को बढ़ाने के लिए यूपी सरकार ने कमर कस ली है। गोरखपुर के फरेंदा क्षेत्र के भारी-बैसी गांव में पांच एकड़ में ‘जटायु (गिद्ध) संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ की स्थापना की जा रही है। इसके लिए मंजूरी मिल गई है। 15 साल के इस प्रोजेक्ट पर तकरीबन 15 करोड़ रुपए खर्च होंगे। प्रदेश का ‘किंग वल्चर’ के संरक्षण का यह पहला केंद्र होगा।
प्रकृति के सफाईकर्मी कहे जाने वाले गिद्धों की संख्या उत्तर प्रदेश में लगातार घट रही
प्रकृति के सफाईकर्मी कहे जाने वाले गिद्धों की संख्या उत्तर प्रदेश में लगातार घट रही है। उत्तर प्रदेश वन विभाग के अनुसार, वर्ष 2012 में प्रदेश में सिर्फ 2070 गिद्ध पाए गए थे। वर्ष 2017 में यूपी में मात्र 1350 गिद्ध ही बचे हैं। उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली नौ प्रजातियों में से तीन प्रमुख प्रजातियां लांग बिल्ड वल्चर यानि लम्बी चोंच वाले गिद्ध, व्हाइट बैक्ड वल्चर यानि सफेद चोंच वाले गिद्ध और राज गिद्ध विलुप्त होने की कगार पर हैं। भारतीय वन्य जीव अधिनियम की अनुसूची (एक) के तहत संरक्षित हैं
किंग वल्चर संरक्षण पर होगा काम
पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के संयुक्त सचिव डॉ. दीपक कोहली ने गोरखपुर वन प्रभाग में ‘जटायु (गिद्ध) संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ की स्थापना के प्रस्ताव की मंजूरी का पत्र जारी किया। इसे हरियाणा के पिंजौर में बनाए गए ‘जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र’ की तर्ज विकसित किया जाएगा। इस केंद्र में किंग वल्चर के संरक्षण पर ज्यादा जोर होगा।
प्रोजेक्ट के लिए 15 करोड़ रुपए मंजूर
गिद्धों के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार ने 82 लाख रुपए की मंजूरी देते हुए प्रभागीय वन अधिकारी गोरखपुर अविनाश कुमार से जून में ही विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) मांगी थी। अविनाश कुमार ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव सुनील पाण्डेय को समय से डीपीआर भेज दी थी। जिस पर 16 सितंबर को सहमति देते हुए अनुमोदन के लिए संयुक्त सचिव कार्यालय को भेजा गया। 15 साल के इस प्रोजेक्ट पर तकरीबन 15 करोड़ रुपए खर्च होंगे। पहले वर्ष के लिए 82 लाख रुपए पहले ही मंजूर किए जा चुके हैं।
प्रख्यात पर्यावरणविद हरगोविन्द कहते हैं कि किंग वल्चर का प्रजनन एवं संरक्षण केंद्र को मंजूरी मिलना पृथ्वी पर किंग वल्चर के अस्तित्व को बचाने का एक बड़ा प्रयास है। यह पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम है।
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प्रभागीय वन अधिकारी, गोरखपुर वन प्रभाग अविना कुमार कहते हैं कि केंद्र, लुप्तप्राय गिद्धों के संरक्षण एवं संरक्षण की दिशा में काम करेगा। आज इसे शासन से मंजूरी मिली है। जल्द ही इसे जमीन पर उतारने के लिए काम शुरू किया जाएगा।
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