मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को लगा तगड़ा झटका, अदालत ने तोड़ दी उम्मीदें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चित्रकूट जिले के कोतवाली कर्वी पुलिस स्टेशन में गैंगस्टर्स एक्ट के तहत दर्ज एक आपराधिक मामले में मऊ से विधायक अब्बास अंसारी की जमानत याचिका खारिज कर दी है। आपको बता दें कि दिवंगत मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।

अदालत ने बताया- अब्बास अंसारी को बताया गया है एक गिरोह का नेता

अब्बास अंसारी की जमानत याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति समित गोपाल ने कहा कि यह स्पष्ट है कि आवेदक ने गैंगस्टर्स एक्ट के तहत उसके खिलाफ दर्ज एक मामले में जमानत मांगी है, जिसमें उसे एक गिरोह का नेता बताया गया है। गिरोह के चार अन्य सदस्य हैं, जो सक्रिय सदस्य बताए गए हैं। गिरोह जिले में सरकार के साथ विधिवत पंजीकृत है।

अब्बास अंसारी का है आपराधिक इतिहास

अदालत ने आगे कहा कि आवेदक का आपराधिक इतिहास है और उसके खिलाफ वर्तमान सहित कुल 11 मामले दर्ज हैं। ये मामले पीएमएलए के तहत अपराध सहित विभिन्न प्रकृति के हैं। यहां तक ​​कि जेल के अधिकारियों ने भी कानून और नियमों के खिलाफ उसकी पत्नी और ड्राइवर को अपने कार्यालय में उसके साथ निजी तौर पर समय बिताने की सुविधा दी।

अब्बास अंसारी द्वारा जांच में छेड़छाड़ किये जाने की संभावना

अदालत ने कहा कि आवेदक-आरोपी की विधायक के रूप में स्थिति उसे आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने और कानून, नियमों और प्रक्रिया के विरुद्ध कार्य करने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं बनाती है। जांच लंबित है, जिसमें साक्ष्य एकत्र किए जाने बाकी हैं, जिसके बाद यह समाप्त हो जाएगी। आवेदक द्वारा जांच में छेड़छाड़ किए जाने की पूरी संभावना है।

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अदालत ने 18 दिसंबर को दिए अपने आदेश में कहा कि आवेदक के आपराधिक इतिहास और विभिन्न मामलों में संलिप्तता को देखते हुए उसके द्वारा अपना अपराध दोहराने की भी संभावना है। विभिन्न मामलों में उसकी संलिप्तता गवाहों और जनता के जीवन और स्वतंत्रता के लिए संभावित खतरा है।

न्यायालय ने दिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला

न्यायालय ने सुधा सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया और आदेश के अंश को उद्धृत किया, जिसमें कहा गया है कि कोई संदेह नहीं है कि स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, यहां तक ​​कि अपराध के आरोपी व्यक्ति की भी, लेकिन न्यायालयों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे पीड़ितों/गवाहों के जीवन और स्वतंत्रता के लिए संभावित खतरे को पहचानें, यदि ऐसे आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाता है।