यहां गांधी परिवार के प्रति वफादारी की परीक्षा है जो पास होता है उसे फल मिलता है. योग्यता, राजनीतिक विचार मायने नहीं रखते हैं. यह कहना है लंबे वक्त से वादा की गई राज्यसभा सीट के लिए अभी भी इंतजार कर रहे एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का. एक ऐसी पार्टी जो अपने नाम के दम पर चुनाव नहीं जीत सकती है, जहां पार्टी के भीतर संतोष से ज्यादा असंतोष पनप रहा है. राज्य सभा नामांकन एक मात्र ऐसा तरीका है जो यह सुनिश्चित कर सकता है कि झुंड बिखरे नहीं और भविष्य की उम्मीद बरकरार रहे.
जी-23 फिर उभर सकता है
उम्मीद के मुताबिक राज्यसभा के लिए नवीनतम नामांकन की पेशकश बहुत कम है. सूची ने दरअसल भारी आक्रोश और एक सवाल को जरूर जन्म दे दिया है. क्या जी-23 (चुनावों में लगातार खराब प्रदर्शन के चलते कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव की मांग हो रही थी, ऐसे में कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी, इन्ही 23 नेताओं के समूह को जी-23 कहा गया था) आंदोलन फिर खड़ा होगा. जो कई असंतुष्ट नेताओं को संतुष्ट करने के बाद हाइबरनेशन में चला गया था. कुल मिलाकर चीजें कांग्रेस के लिए अच्छी नहीं दिख रही है. खासकर गुजरात और हिमाचल प्रदेश में, अगर पार्टी यहां हार जाती है. तो भीतरी बंदूके फिर से तन सकती हैं और जी-23 फिर उभर सकता है.
जरूरत पूरा करने के लिए राजस्थान रिजर्व नहीं
यहां तक कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान जहां कांग्रेस सत्ता में हैं, यहां भी संबंधित राज्यों के लोगों को टिकट हासिल नहीं हुआ है. अशोक गहलोत के करीबी राजस्थान के एक नेता का कहना है कि हम आलाकमान की जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य को रिजर्व नहीं रख सकते हैं. मनीष तिवारी ने भी इसी तरह की चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि राज्य सभा अब एक पार्किंग स्लॉट की तरह हो गई है, अब हमें गंभीरता से यह सोचना चाहिए की देश को राज्यसभा की ज़रूरत भी है या नहीं. सिरोही से कांग्रेस के विधायक संयम लोधा ने कहा कि पार्टी को सही में बताना होगा कि राजस्थान से किसी को क्यों राज्य सभा टिकट नहीं दिया गया.
नगमा की नाराजगी
नगमा जैसे कुछ लोगों ने तो खुल कर शीर्ष नेतृत्व पर हमला किया और कहां कि उसे लंबे वक्त से राज्य सभा सीट देने का वादा किया गया था. लेकिन उनके बजाए इमरान प्रतापगढी को महाराष्ट्र से टिकट दे दिया गया. प्रतापगढ़ी को टिकट दिए जाने ने महाराष्ट्र में विरोध का बिगुल बजा दिया है महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता का यही सवाल है कि राज्य की सीट के लिए बाहरी व्यक्ति को क्यों चुना गया. गांधी परिवार का यह चुनाव इसलिए हैं क्योंकि प्रतापगढ़ी मुस्लिम पहचान के लिए लड़ने वाले एक आक्रामक राजनेता हैं और कांग्रेस को उम्मीद है कि ज्ञानवापी मस्जिद जैसे हालिया विवाद को लेकर अल्पसंख्यकों के बीच उनका आधार मजबूत होगा.
पवन खेड़ा भी निराश
आमतौर पर खुद को संयमित रखने वाले पवन खेड़ा भी निराशा व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं पाए. सूत्रों सेमिली जानका री के मुताबिक टिकट नहीं मिलने से निराश कई उम्मीदवार अब दूसरी पार्टी में उम्मीद तलाश रहे हैं. कुछ पहले से ही आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के संपर्क में है. जी-23 नेताओं के समूह ने मुद्दा उठाते हुए कहा था कि कांग्रेस अब पार्टी से ज्यादा कुछ लोंगों का क्लब बन कर रह गया है, जहां केवल कुछ ही लोगों को पद और नामांकन मिल पाता है. गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे कुछ लोगों को तो नामांकित तक नहीं किया गया. जी-23 में कई लोगों को लगता है कि चिंतन शिविर में दिए गए आश्वासनों के बावजूद कुछ नहीं बदला और कोई सबक भी नहीं सीखा गया.
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उदयपुर के प्रस्ताव का मजाक
पार्टी में अब ऐसी भावनाएं पनप रही हैं कि राज्यसभा की सूची ने उदयपुर के उस प्रस्ताव का मजाक उड़ाया है जिसमें 50 साल से कम उम्र के नेताओं को लिए 50 फीसद पदों के आरक्षण की बात कही गई थी. अब कई और लोग भी जी-23 ने जो मुद्दे उठाये थे उनका समर्थन करते दिख रहे हैं. शीर्ष नेतृत्व के लिए यह एक दुविधा की स्थिति है. अवसर सीमित हैं उसमें जो वफादार है उन्हें मौका दिया जाए या दूसरे को. ऐसे में शीर्ष नेतृत्व को संतुलन साधने की ज़रूरत होगी. हालांकि यह इतना आसान नहीं है.