उत्तर प्रदेश में बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी बनाम नीलकंठ महादेव मंदिर मामले की सुनवाई 3 दिसंबर को जिला न्यायालय में होनी थी। यह मामला संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण को लेकर उठे विवाद के बीच आया, जिसे हिंदू हरिहर मंदिर कहते हैं। हालांकि, मुस्लिम पक्ष की दलीलें पूरी न होने के कारण इसे 10 दिसंबर तक के लिए टाल दिया गया। 30 नवंबर को इंतेज़ामिया कमेटी (मस्जिद का प्रबंधन करने वाली संस्था) ने अपनी स्थिति स्पष्ट की थी।
भगवान शिव का मंदिर तोड़कर बनाई गई जामा मस्जिद
हिंदू कार्यकर्ता मुकेश पटेल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस ढांचे में भगवान शिव का मंदिर है। कोर्ट को इस मामले की सुनवाई की समीक्षा करनी थी। इस मामले की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया है। मुस्लिम पक्ष को सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में अपना पक्ष रखना था। इसके बाद हिंदू पक्ष को अपनी दलील पेश करनी थी। सरकार की दलील पूरी होने के बाद पुरातत्व विभाग ने कोर्ट में इसे अपनी संपत्ति घोषित कर दिया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे।
हिंदुओं का कहना है कि बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी का निर्माण नीलकंठ महादेव मंदिर को तोड़कर किया गया था, जो पहले इस स्थान पर था।
मुसलमानों ने हिन्दुओं के दावों को बताया झूठा
दूसरी ओर, मुसलमानों का आरोप है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि शम्सी मस्जिद किसी मंदिर के ऊपर बनाई गई थी और इसे सूफी ‘संत’ बादशाह शमशुद्दीन अल्तमश ने बनवाया था। उनका दावा है कि जब अल्तमश बदायूं आए थे, तो उन्होंने अल्लाह की इबादत करने के लिए मस्जिद बनवाई थी और इस मस्जिद में मंदिर या मूर्ति होने का कोई सबूत नहीं है। मुस्लिम पक्ष ने तर्क दिया कि इस मस्जिद के बारे में किए जा रहे दावे झूठे हैं।
असदुद्दीन ओवैसी ने इस मुद्दे पर उठाए सवाल
इस मुद्दे को लेकर एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने एक्स पर पोस्ट किया। उन्होंने लिखा कि उत्तर प्रदेश के बदायूं में जामा मस्जिद को भी निशाना बनाया गया है। 2022 में कोर्ट में केस दायर किया गया है और इसकी अगली सुनवाई 3 दिसंबर को होगी।
उन्होंने अपनी पोस्ट में आगे लिखा कि एएसआई (जो भारत सरकार के अधीन काम करती है) और यूपी सरकार भी इस केस में पक्षकार हैं। दोनों सरकारों को 1991 के एक्ट के हिसाब से अपने विचार रखने होंगे। कट्टरपंथी हिंदुत्व संगठन किसी भी हद तक जा सकते हैं, उन्हें रोकना भारत की शांति और एकता के लिए बहुत ज़रूरी है। आने वाली पीढ़ियाँ एआई का अध्ययन करने के बजाय एएसआई में ही उलझी हुई हैं।
वर्ष 2022 में अदालत में दायर किया गया है मामला
इस विवाद के कारण इलाके में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। इस मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार को पक्ष बनाया गया है। 1991 का पूजा स्थल अधिनियम अदालती मामले की नींव का काम करेगा।
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इस मामले को लेकर वर्ष 2022 में अदालत में मामला दायर किया गया है। इस बीच, 24 नवंबर को संभल की मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क उठी, क्योंकि मुस्लिम भीड़ ने अधिकारियों पर पथराव किया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई, दर्जनों पुलिसकर्मी घायल हो गए और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा।