वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे बुधवार को कांग्रेस के नए अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर को 6,825 मतों के अंतर से शिकस्त दी। कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के प्रमुख मधुसूदन मिस्त्री ने 17 अक्टूबर को अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव नतीजों का एलान किया। दलित समुदाय से आने वाले 80 वर्षीय खड़गे की पहचान एक जमीनी नेता की रही है। खड़गे के आने से कितनी बदलेगी कांग्रेस और क्या होंगी उनके सामने चुनौतियां, प्रस्तुत है इन सवालों की पड़ताल करती एक रिपोर्ट…
इन परीक्षाओं से होगी कार्यकाल की शुरुआत
अध्यक्ष के तौर पर कांग्रेस की कमान संभालने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे को कई चुनावी परीक्षाओं से गुजरना होगा। इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में खड़गे के कार्यकाल की शुरुआत इन दो चुनावी परीक्षाओं से होगी। चुनावी परीक्षाओं का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा क्योंकि अगले साल की शुरुआत में कर्नाटक में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल से ही 2024 में होने वाले आम चुनावों की सरगर्मी तेज हो जाएगी। जाहिर है खड़गे से बेहतर प्रदर्शन की अपेक्षाएं भी होंगी।
चुनावों में ज्यादा होंगी अपेक्षाएं
कांग्रेस के इतिहास पर नजर डालें तो पाते हैं कि पूरे 51 वर्ष बाद कोई दलित नेता पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहा है। चूंकि गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में दलित मतदाता चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे से उक्त सभी चुनावों में अपेक्षाएं ज्यादा होंगी। साल 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में अधिकांश आदिवासी और दलित मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा जताया था। इसलिए मल्लिकार्जुन खड़गे पर दलित मतदाताओं को अपने पाले में करने की चुनौती भी होगी।
संगठन में जमीनी नेताओं को जगह दिलाने की चुनौती
खड़गे के सामने कांग्रेस नेताओं को बांधे रखने और उनके पार्टी छोड़ने के सिलसिले पर लगाम लगाने की चुनौती भी होगी। खड़गे पर पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने की जिम्मेदारी होगी क्योंकि शीर्ष से लेकर ब्लाक तक जीर्ण-शीर्ण हालत पहुंच चुका यह ढांचा कार्यकर्ताओं को मायूस करता है। विश्लेषकों का कहना है कि खड़गे को पार्टी के संगठनात्मक ढांचे से हवा-हवाई नेताओं से निजात दिलाने की अपेक्षा भी है। खड़गे को संगठन में जमीनी नेताओं को जगह देनी होगी ताकि आम पार्टी कार्यकर्ताओं में सकारात्मक संदेश जाए।
समन्वय और जनाधार बढ़ाने की जिम्मेदारी
सक्रिय राजनीति में पांच दशकों से ज्यादा अनुभव रखने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे केंद्रीय मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में कांग्रेस के नेता के तौर पर जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। कर्नाटक में नौ बार विधायक रहते हुए उन्होंने कई विभागों को संभाला है। एक जुझारू, मुखर और सुलभ राजनेता के तौर पर चर्चित खड़गे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में सहज हैं। लेकिन उन्हें हिंदी भाषी राज्यों में रणनीति बनाने के लिए बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में जब पूर्वोत्तर सहित कुछ अन्य राज्यों में कांग्रेस के आधार में गिरावट देखी गई है। खड़गे को इन चुनौतियों से पार पाना भी होगा।
आम आदमी पार्टी की चुनौती से भी पाना होगा पार
मौजूदा वक्त में देखा जाए तो कुछ राज्यों में आम आदमी पार्टी ने शानदार आगाज किया है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली है। कई अन्य चुनावी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी वह बड़ी बड़ी चुनौती के रूप में उभर रही है। ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे के पास भाजपा के साथ ही आम आदमी पार्टी की सियासी चुनौती को शिकस्त देने की बड़ी जिम्मेदारी होगी।
विपक्षी एकता का खींचना होगा खाका
वहीं समाचार एजेंसी एएनआइ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कांग्रेस पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने हाल के महीनों और वर्षों में कांग्रेस छोड़ दी है। इस साल की शुरुआत में पंजाब और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के लिए पार्टी नेतृत्व की पसंद को जिम्मेदार ठहराया गया था। ऐसे में खड़गे के नेतृत्व में पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बड़ी विपक्षी एकता का खाका खींचने के साथ भाजपा की ‘चुनावी मशीनरी’ की काट के लिए अपनी रणनीति को भी धार देनी होगी। साथ ही पार्टी नेताओं का भरोसा जीतना होगा।
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर भी लेना होगा निर्णय
बीते दो लोकसभा चुनावों के अनुभव को देखते हुए कांग्रेस को पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार या संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार पर भी फैसला लेना होगा। यह बेहद मुश्किल टास्क होगा जिसके निस्तारण की जिम्मेदारी मल्लिकार्जुन खड़गे के पास होगी। इस मसले पर राहुल गांधी ने बड़ा संकेत दिया है। भारत जोड़ा यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी से जब पूछा गया कि आने वाले दिनों में उनकी क्या भूमिका होगी तो उन्होंने साफ कहा कि पार्टी अध्यक्ष ही तय करेंगे कि मेरी भूमिका क्या होगी… मुझे क्या काम सौंपा जाएगा इसका जवाब खड़गे जी और सोनिया जी से पूछें…
उदयपुर घोषणा के अनुपालन पर होगा फोकस..
इस साल मई में कांग्रेस ने उदयपुर में चिंतन शिविर का आयोजन किया था। इसमें कांग्रेस ने अहम सुधार, जनता से जुड़ाव और सड़क पर संघर्ष के मूल मंत्र का संकल्प लिया था। उदयपुर घोषणा पत्र में बड़े सुधारों को लागू करने, एक व्यक्ति एक पद और एक परिवार को एक टिकट देने की बात कही गई थी। साथ ही संगठन में हर स्तर पर 50 फीसदी पद 50 साल से कम उम्र के युवा चेहरों को देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। खड़गे पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वह पार्टी की उदयपुर घोषणा को ईमानदारी से लागू करेंगे। खड़गे के सामने इन संकल्पों को लागू करने की चुनौती भी होगी।
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समन्वय और संवाद प्रक्रिया पर करना होगा काम
कांग्रेस कार्यकर्ता संवादहीनता की शिकायत करते रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को आने वाले दिनों में संवाद प्रक्रिया पर काम करने के साथ अपने अहम फैसलों को समावेशी और सर्वस्वीकार्य बनाने का रास्ता अपनाना होगा। बीते कुछ चुनावों में कांग्रेस आम मतदाताओं नब्ज टटोलने में विफल रही है। ऐसे में खड़गे के पास राज्यों में पार्टी के ढांचे को मजबूती देने के साथ नई पीढ़ी के भीड़ जुटाऊ लोकप्रिय नेताओं की फौज तैयार करने की जिम्मेदारी भी होगी। इतना ही नहीं नए कांग्रेस प्रमुख को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों के निर्णय लेने का दायरा बढ़ाते हुए उनकी जवाबदेही भी सुनिश्चित करनी होगी।