कोरोना से मुक्ति की प्रार्थना के साथ ‘हेमकुंड साहिब’ के कपाट हुए बंद, स्वर्ग से भी सुंदर माना जाता है तीर्थस्थान

श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा 6 महीने तक बर्फ से ढका रहता है, श्री हेमकुंड साहिब अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है और यह देश के सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक है। गुरूद्वारे के पास ही एक सरोवर है। इस पवित्र जगह को अमृत सरोवर कहा जाता है। यह चारों तरफ से हिमालय की सात चोटियों से घिरा हुआ है

फोटो:साभार गूगल

जोशीमठ (उत्तराखंड )। सिखों के प्रसिद्ध तीर्थस्थान हेमकुंड साहिब-लोकपाल के कपाट शीतकाल के लिए शनिवार को बंद हो गए। हिमालय में 4632 मीटर (15,200 फुट) की ऊंचाई पर एक बर्फ़ीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित हेमकुंड साहिब-लोकपाल में इस वर्ष की अंतिम अरदास में करीब साढ़े तेरह सौ श्रद्धालुओं की मौजूदगी रही।

दोपहर 1:30 बजे बंद हुए कपाट

बोले सो निहाल के जयकारों के बीच दोपहर ठीक डेढ़ बजे हेमकुंड साहिब के कपाट बंद कर दिए गए। इसी के साथ लक्ष्मण मंदिर लोकपाल तीर्थ के कपाट भी विधिविधान के साथ शीतकाल के लिए बंद किए गए।

बर्फ से ऐसे ढक जाता यह तीर्थस्थान

सुबह नौ बजे से शबद कीर्तन हुआ

सुबह नौ बजे से कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत शबद कीर्तन, मुख वाक के बाद दोपहर साढ़े बारह बजे हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के मुख्य ग्रंथी भाई मिलाप सिंह द्वारा इस वर्ष की अंतिम अरदास की गई।

कोरोना से जल्द मुक्ति की प्रार्थना की गई

 अरदास के बाद विश्व को कोरोना जैसी महामारी से जल्द मुक्ति के लिए भी प्रार्थना की गई। इस मौके पर हेमकुंड साहिब में करीब साढ़े तेरह सौ श्रद्धालुओं की मौजूदगी रही। दोपहर करीब डेढ़ बजे पंच प्यारों की अगुवाई मे पवित्र श्री गुरुग्रंथ साहिब को दरबार हाल से सतखंड मे सुशोभित किया गया और जयकारों के बीच कपाट बंद किए गए।

कुछ ऐसी रहती यहां की रोनक

4 सितम्बर को हेमकुंड साहिब के कपाट खोले गए थे

हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट के मुख्य प्रबंधक सरदार सेवा सिंह के अनुसार इस वर्ष कोरोना के कारण बीती 4 सितम्बर को हेमकुंड साहिब के कपाट खोले गए थे। और इन 36 दिनों मे करीब साढ़े आठ हजार श्रद्धालुओं ने हेमकुंड साहिब पंहुचकर पवित्र सरोवर मे स्नान किया व गुरुद्वारे में माथा टेका। उधर हिंदुओं के पवित्र तीर्थ लक्ष्मण मंदिर-लोकपाल के कपाट भी शनिवार को पूरे विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस मौके पर भ्यूंडार-पुलना व आस-पास के ग्रामीण मौजूद रहे।